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शिशुओं को डिप्थीरिया के संक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए टीका है जरूरी : डीआईओ

 

– डिप्थीरिया के लक्षणों की जानकारी और नियमित टीकाकरण से बचाव संभव
– डिप्थीरिया का टीका केवल नवजात शिशु के लिए ही नहीं किशोरियों और गर्भवतियों के लिए भी है आवश्यक

मुंगेर, 13 अक्टूबर। डिप्थीरिया को आम भाषा में गलघोंटू कहा जाता है। यह सांस से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है। 5 साल से कम उम्र के शिशु, रोग प्रतिरोधक शक्ति कम होने की वजह से आसानी से इस रोग की चपेट में आ सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक शोध के अनुसार विश्व में जिन गंभीर संक्रामक रोगों से लगभग 20 से 30 लाख शिशुओं की मौत हुई है, उनमें डिप्थीरिया भी प्रमुख है। इससे बचाव के लिए जन्म के बाद शिशुओं को डीपीटी (डिप्थीरिया-परटुसिस-टेटनस) का टीका लगाना आवश्यक है।

क्या हैं इस रोग के लक्षण और बचाव ?
मुंगेर के जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. राजेश कुमार रौशन ने बताया कि गला घोंटू ‘कोरनीबैक्टीरियम डिप्थेरी’ जीवाणु से फैलने वाला एक संक्रामक बीमारी है। इसके संक्रमण से बच्चों के गला, नाक और स्वर यंत्र (सांस नली का ऊपरी हिस्सा ) में सूजन आ जाती है । इसके कारण उन्हें सांस लेने या बात करने में दर्द सहित अन्य कठिनाइयां होती है। यहाँ तक की हृदय और आँख भी इससे बिना प्रभावित हुए नहीं रहते हैं। यदि शिशु को कमजोरी, गले में दर्द या खराश, भूख नहीं लगना या खाना निगलने में तकलीफ़ होना, गले के दोनों तरफ टॉन्सिल फूल जाना जैसे लक्षण दिखे तो बिना देर किए चिकित्सक के संपर्क करना चाहिए क्योंकि इस मामले में तनिक भी लापरवाही शिशु के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। इसके लिए आवश्यक है कि प्रत्येक अभिभावक जागरूक होकर अपने शिशुओं को डेढ़, ढाई और साढ़े तीन महीने पर डीपीटी का टीका तथा 18 महीने और 5 वर्ष की उम्र में बूस्टर की डोज़ जरूर दिलवाएँ। सम्पूर्ण टीकाकरण चार्ट के अनुसार सभी टीके दिलवाकर शिशु संबन्धित रोगों को पूर्ण रूप से खत्म किया जा सकता है।

गर्भवतियों महिलाओं और किशोरियों को भी डिप्थीरिया से बचाना है जरूरी :
उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार डिप्थीरिया की वैक्सीन एक निश्चित समय तक ही शरीर को संक्रमण से बचा सकती है। वैक्सीन का प्रभाव खत्म होने पर फिर से रोग होने की संभावना लगी रहती है। इसलिए केवल शिशुओं को ही नहीं बल्कि किशोरियों और गर्भवती महिलाओं को भी गलाघोंटू के संक्रमण से बचाने के लिए वैक्सीन लगाए जाने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा निर्देशित टीकाकरण सूची के अनुसार किशोरियों को भी 10 और 16 साल पर तथा गर्भवती महिलाओं के लिए पहला टीका आरंभिक गर्भावस्था में और दूसरा टीका पहले टीके से एक माह बाद दिया जाता है। बूस्टर डोज तब दिया जाएगा यदि गर्भधारण पिछली गर्भावस्था के तीन वर्ष के भीतर हुआ हो और टीडी की दो खुराक दी जा चुकी हो।

डिप्थीरिया के संक्रमण से बचने के लिए धूल-मिट्टी और ठंड से बचाना है आवश्यक : कोई भी संक्रमण गंदे धूल और सीलन से भरे स्थानों पर जल्दी पनपते हैं। दिवाली की साफ-सफाई के दौरान धूल से बच्चों और गर्भवतियों में डिप्थीरिया जैसे रोगों से संक्रमित होने का खतरा बढ़ सकता है। इसलिए उन्हें इन सबसे बचाकर रखना चाहिए । इसके साथ ही अति आवश्यक होने पर ही घर से बाहर जाने दें। इस दौरान मास्क और सैनिटाइजर का उपयोग तथा शारीरिक दूरी के नियम का पालन करने के लिए भी जागरूक किए जाने की आवश्यकता है। इसके साथ हीं हवा में फैले महीन धूल के कण और प्रदूषण हानिकारक हो सकते हैं। ठंड से भी गले नाक और मुंह में सूजन या दर्द हो सकता है इसलिए बढ़ते ठंड से बचें तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले आहार और पेय पदार्थों को भोजन में शामिल कर अपने शरीर को रोग से लड़ने के लिए मजबूत बनाएँ।

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