देश-दुनियाँ

*चैतन्यचंद्र निज नाम के दान हेतु अवतरित हुए: चंचलापति दास*

*फूलों की होली, छप्पन भोग, हरिनाम संकीर्तन एवं महाभिषेक रहा आकर्षण का केन्द्र*
*चंद्रोदय मंदिर में महाभिषेक के दर्शन के लिए उमड़ा जन सैलाब।*

विश्व प्रसिद्ध ब्रजमंडल की होली उत्सव के मध्य फाल्गुन की पूर्णिमा को प्रेमावतार श्री चैतन्य चंद्र का अवतरण हुआ। भक्ति वेदांत स्वामी मार्ग स्थित वृन्दावन चंद्रोदय मंदिर में श्री गौरांग महाप्रभु की जयंती पर मंदिर प्रांगण में फूल बंगला, छप्पन भोग, पालकी उत्सव, महाभिषेक, हरिनाम संकीर्तन एवं फूलों की होली का आयोजन हुआ।
भक्तों को सम्बोधित करते हुए चंद्रोदय मंदिर के अध्यक्ष श्री चंचलापति दास ने कहा गौड़ीया वैष्णव आचार्य भक्ति विनोद ठाकुर गौर तत्व कि व्यख्या में कहते है चैतन्य महाप्रभु स्वयं नंद सुता हैं। प्रेमावतार चैतन्य महाप्रभु निज नाम का दान करने के लिए अवतरित हुए। वो कलियुग में अधम प्राणियों के उद्धार के लिए, महाप्रभु ने नाम प्रभु के रूप में अवतरण लिया और उन्होंने हरे कृष्ण मंत्र को जन सामान्य के लिए प्रकाशित किया। इनका पूरा शरीर संकीर्तन शरीर है। अतः इनके शरीर से सदैव हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे का प्रवाह होता है। श्री चैतन्य महाप्रभु को प्रेमावतार करूणावतार कहा गया है। श्री राधा जी को श्रीकृष्ण से प्रेम करके कैसा रसास्वाद मिलता है। स्वयं श्रीकृष्ण ने राधा भाव लेकर चैतन्य महाप्रभु के रूप में नदिया नामक ग्राम में जन्म लिया। श्री महाप्रभु ने उस प्रेम का आश्रय बनकर तो सुख लिया, अधिकारी अनाधिकारी सभी को अधिकारी बनाकर प्रेम प्रदान किया। श्रीराम ने राक्षसों का मारा, श्रीकृष्ण ने रति प्रदान कीए चैतन्य महाप्रभु ने उनका उद्धार किया। महाप्रभु ने उनकी दुष्टता का हरण कर करूणा के योग्य बनाया।
मथुरा, आगरा, लखनऊ, दिल्ली, गुरूग्राम, जयपुर, हरियाणा एवं मध्यप्रदेश के अन्य जिलों भक्तगण परिकर उपस्थित हुए।

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