पटना/ 13 दिसंबर-
“मैं पिछले साल टीबी से ग्रसित हो गया था. छः महीने तक लगातार दवा का सेवन एवं समुचित पौष्टिक आहार ने मुझे इस रोग से उबरने में मदद की. मैंने इस रोग से लड़ाई के दौरान महसूस किया कि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में पौष्टिक तत्वों का दैनिक खान-पान में कितना महत्त्व है. टीबी से सबसे ज्यादा पीड़ित समाज के गरीब तबके के लोग होते हैं और संसाधन के अभाव में उन्हें पौष्टिक भोजन की आपूर्ति नहीं हो पाती है. मैंने अपने अनुभव से सीखा और फैसला किया कि केंद्र सरकार द्वारा चलायी जा रही निक्षय मित्र योजना के तहत मैं भी एक निक्षय मित्र बन अपने सामर्थ के मुताबिक टीबी मरीजों को गोद लेकर उनकी पोषण की जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करूँगा”, उक्त बातें बैंगलोर निवासी सेंथिल राधाकृष्णन ने बताई जो एक निक्षय मित्र बन समुदाय से टीबी उन्मूलन अभियान में अपना सहयोग कर रहे हैं.
5 मरीजों को लिया गोद:
सेंथिल राधाकृष्णन बैंगलोर में एक निजी कंपनी में वरीय पद पर कार्यरत हैं. उन्होंने कुल 2 टीबी मरीजों को गोद लिया है. गोद लिए गए दोनों मरीज पटना जिले के हैं. जिला यक्ष्मा नियंत्रण कार्यालय, पटना में उन्होंने नवंबर माह में निक्षय मित्र के रूप में अपना निबंधन कराया और दिसंबर महीने से उन्होंने गोद लिए मरीजों के बीच पोषण सामग्रियों का वितरण शुरू करवाया. लगातार छः महीने तक गोद लिए गए जिले के दोनों टीबी मरीजों को सेंथिल राधाकृष्णन द्वारा पोषण सामग्री उपलब्ध करायी जायेगी.
बिहार में टीबी मरीजों को गोद लेना रहा सही निर्णय:
सेंथिल राधाकृष्णन ने बताया कि टीबी मरीजों को गोद लेने के लिए बिहार का चयन करते समय मैंने राज्य की आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियों का आंकलन किया. मैंने पाया कि राज्य में एक बड़ा तबका अभी भी गरीबी रेखा के नीचे है. टीबी से सबसे ज्यादा पीड़ित समाज के गरीब तबके के लोग होते हैं इसलिए मैंने बिहार के टीबी मरीजों को गोद लेने का फैसला किया. सेंथिल ने बताया कि मुझे अपने फैसले पर गर्व है और भविष्य में अगर संभव हुआ तो मैं और मरीजों को गोद लेकर उनकी पोषण की जरूरतों को पूरा करूँगा.
सेंथिल राधाकृष्णन हैं समुदाय के लिए उदाहरण- डॉ. कुमारी गायत्री सिंह
जिला यक्ष्मा नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. कुमारी गायत्री सिंह ने बताया कि सेंथिल राधाकृष्णन जिला एवं राज्य के लोगों के लिए उदाहरण हैं. जहाँ लोग अपने जिले में भी निक्षय मित्र बनने में हिचक रहे हैं वहीँ सेंथिल ने अपने गृह राज्य के अलावा दुसरे राज्य में भी टीबी मरीजों को गोद लेकर मिसाल कायम किया है. यह उनकी प्रगतिशील सोच को दर्शाता है और सेंथिल जैसे व्यक्ति टीबी उन्मूलन अभियान में अपनी अमिट छाप छोड़ रहे हैं.