सर्वधर्म सद्भाव, अंहिसा, दया, करूणा, नैतिकता व देशप्रेम की धारा प्रवाहित करने में डॉ. कुसुम लुनिया निरन्तर लगी हुई हैं। वर्तमान में जीते हुए शाश्वत को सामने रखकर कालजयी मूल्यों को आगे रखकर साहित्य के माध्यम से सौहार्द प्रसारित करने का शानदार कार्य किया है डॉ. लुनिया ने।
आमजन की चेतना को जगाने, देश व समाज केलिए खरी-खरी लिखकर पाठकों को सही दिशा देकर सही रास्ते पर चलाने का इनका प्रयास बहुत सफल रहा है।
इसलिए ही इनके पुस्तकें तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से प्रशंस्ति होकर हजारों लाखों लोगों तक पंहुची है। ”अणुव्रत” युवादृष्टि आदि पत्रिकाओं के माध्यम से आपके लेख स्कूल, कॉलेज, ऑनलाईन सोशल प्लेटफार्म पर धडल्ले से पढे जा रहे हैं। कोरोनाकाल में सकारात्मकता प्रसारण के उद्देश्य से अणुव्रत के 81 एपिसोड सोशल मिडीया में चलाये। कवि सम्मेलन, क्वीज, असली आजादी अपनाओ, आदि 43 रोचक प्रोग्राम ऑन लाइन किये। डॉ लुनिया बदलाव की हस्ताक्षर बनकर हरउम्र वर्ग के पाठकों पर असर कर रही है। नशे से बुरी आदतें अनेक लोगों ने छोडी है। सकारात्मक संयमित जीवनशैली अपनाई है, जिससे समाज में खुशनुमा वातावरण में वृद्ध हुई है। समाज हितकारी इनके कार्यों का मुंल्याकन करके समय सनय पर अनेक सम्मानों से आपको नवाजा गया है जिसमें से प्रमुख निन्न हैः-
अणुव्रत लेखक पुरस्कार-2022
(अणुव्रत विश्व भारती)
साहित्यिक प्रतिभा सम्मान-2021
(राजस्थान संस्था संघ)
धर्म सेवी सम्मान-2019
(दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन)
लाडली सम्मान-2018
(सर्वजनहिताय समाज कल्याण समिति )
साहित्य श्री सम्मान-2018
(अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी सेवा समिति)
एचीवर्स अवार्ड- 2017
(पीएन व एस वी अन न्युज )
रांष्ट्रभाषा गौरव सम्मान-2014
(अखिल भारतीय हिन्दी सेवी संस्थान)
विजयेन्द्र स्नातक सम्मान- 2013- (इन्द्रप्रस्थ साहित्य भारती)
डॉ. नेमीचन्द जैन अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान-2004
(डॉ. नेमीचन्द जैन फाउडेशन)
गंगादेवी सरावगी जैन विधा पुरस्कार-2004
(जैन विश्व भारती )
डॉ. कुसुम लुनिया ने सर्वात्मना समर्पण से साहित्यिक रचनाधर्मिता में भूत, भविष्य व वर्तमान को समाहित करके समाज को बदलाव के दिव्य प्रकाश से प्रकाशित किया है।
साहित्य में योगदान
डॉ. कुसुम लुनिया के साहित्य का लक्ष्य मनुष्यता है जो सहज भाषा में ऊंचे विचारों और श्रेष्ठ जीवन मूल्यों को अनायास ग्राह्य बनाता है। इसमें प्रेषणधर्मिता का मुख्य गुण है जिससे इनका साहित्य युग को बदलने की क्षमता रखता है।”शिखर तक चलो”उपन्यास में नक्सलवाद की समस्या का प्रत्येक पहलु से अध्ययन कर सटीक समाधान प्रस्तुत किया है। इसको ऑडियो बुक के रुप में तीन लाख लोगो ने पढा, सुना और सराहा है। अनेक विधार्थी इसपर शोघ कर चुके हैं,। सामाजिक रूंढियों पर प्रहार के साथ अणुव्रत दर्शन की राह सुझाती पुस्तक “युगदृष्टा” के भव्य मंचन को देश विदेश में बहुत सराहना मिली। महिला सशक्तिकरण व कन्या भ्रूण रक्षा को प्रमुखता से प्रस्तुत करती पुस्तक “ऊंची उडान “के भी अनेक नाट्य मंचन हुए।उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इसके क्लाईमेक्स के दौरान अश्रुपुरितआखों से दर्शक वर्ग ने खडे होकर कन्या भ्रूण हत्या नहीं करने – नहीं करवाने – नही अनुमोदन करने के संकल्प लिये। शाकाहार विषयक पुस्तकें “ शाकाहारःश्रेष्ठ आहार” व सीक्रेट्स ऑफ हेल्थ द वेजीटेरियन वे” से शाकाहार का प्रचुर प्रसार हुआ।”दिव्य ज्योति” और “ समता की सुगंध” पुस्तकों से संयम व समता का संदेश प्रसरित हुआ। “जैन जीवन शैली” शौधग्रन्थ में जीवन जीने की कला को प्रस्तुत किया गया है। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में छपे इनके समसामयिक लेखों में उच्च चिन्तन, स्वाधीनता का भाव, सौन्दर्य का सार, सृजन की आत्मा और जीवन की सच्चाईयों का प्रकाश है जो पाठकों में गति व बैचेनी पैदा करके समाज परिष्कार का पथ प्रशस्त कर रहा है।
इस प्रकार स्पष्टहै कि डॉ. लुनिया ने समाज के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने के लिए साहित्य को माध्यम बनाया। बहुविध साहित्य का सृजन किया। कहानी, कविता,नाटक, लेख आदि द्वारा ज्ञान शशि के कोष को संचित किया। इनका साहित्य मनुष्य की शक्ति-दुर्बलता, जय पराजय, हास-अश्रु और जीवन मृत्यु की कथा कहता है। इनकी रचनाएं मनुष्य समाज को रोग-शोक, दारिद्रय अज्ञान तथा परामुखापेक्षिता से बचाकर उसमें आत्मबल का संचार करता है।इनके साहित्य में उच्चचिंतन, स्वाधीनता का भाव, सौन्दर्य का सार, सृजन की आत्मा और जीवन की सच्चाइयों का प्रकाश है जो पाठकों , श्रोताओं दर्शकों में गति और बैचेनी पैदा करता है।
मानवता के लिए सदा कार्य किया
साहित्यिक .सामाजिक, शैक्षणिक व धार्मिक संगठनों से जुडकर विधार्थियों व आम लोगों के भावनात्मक, सामाजिक, नैतिक और चारित्रिक कल्याण को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
साहित्य सृजनकारों में नातिकता पुष्टि हेतु इन्होने अनेक अणुव्रत साहित्यकार व कवि सम्मेलनों का सफल आयोजन किया है।
सम्पूर्ण मानवता के प्रति उत्तरदायित्व निभाती इनकी लेखनी ने समस्याओं पर प्रहार ही नहीं उनका संहार भी किया है। सरस्वती मां के चरणों में वर्षो से सेवारत डॉ. लुनिया ने सत्साहित्य सृजन द्वारा समाज कल्याण किया है।
अतः इनके व्यापक साहित्यिक सेवा कार्यों को देखते हुए पद्मश्री सम्मान के लिए इनकी अनुशंसा करते हैं।
साहित्य व शिक्षा के माध्यम से शाश्वत मानवीय मूल्यों से समाज की बेहतरी हेतु प्रयासरत डॉ. कुसुम लुनिया विभिन्न संस्थाओं से जुडकर उनमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। भारत सरकार के विज्ञान व प्रोधोगिकी मंत्रालय व पृथ्वी विज्ञान मन्त्रालय की संयुक्त हिन्दी सलाहकार समिति की सदस्या, अणुव्रत विश्व भारती की संगठन मन्त्री, अणुव्रत उदबोधन सप्ताह की राष्ट्रीय संयोजिका, अणुव्रत स्थापना दिवस की राष्ट्रीय संयोजिका,अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास के बौद्धिक प्रकोष्ठ की संचालिका हैं। इतिहास संकलन समिति पूर्वी दिल्ली की व तेरापंथ प्रोफेशनल फोर्म की परामर्शक,जैन विश्व भारती विश्व विधालय की समन्वयक रही हैं।फिल्म राईटर्स एशोसियेशन की एसोसियेट मेम्बर, इन्द्रप्रस्थ साहित्य भारती, दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन की आजीवन सदस्याहैं।
देश व समाज उत्थान को समर्पित साहित्य सृजन में संलग्न आपकी लेखनी के जादू से बंधकर पाठक के सहज ही भाव परिवर्तित होजात हैं। कुशल मंच संचालक व वक्तृत्व कला की धनी डॉ. कुसुम की शैक्षणिक सामाजिक उपलब्धियों के साथ बहुत विनम्र व काम के प्रति समर्पित हैं। आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन आशीर्वाद से इन्हे विरासत में सेवा के संस्कार मिले हैं।पिताश्री जतनलाल जी ने पूर्वोत्तर भारत व नेपाल में सुसंस्कार निर्माण के लिए अनेक संगँठन खडे किये।पति डॉ. धनपत लुनिया दिल्ली सभा के महामन्त्री, उपाध्यक्ष आदि पदो के साथ ज्ञानशाला के श्रेष्ठ संयोजक रहे हैं। पुत्र वतन व विशाल तथा बहुएं दिव्या व निवेदिता उच्च शिक्षित सफल प्रोफेशनल आध्यात्मिकता से ओतप्रोत युवा हैं। साराशंतः डॉ. कुसुम लुनिया अपने कालजयी साहित्य से ऐसे संरचनात्मक कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार कर रही है जिससे इस दुनिया को युद्ध, हिंसा,अविश्वास एवं असुरक्षा के अनिष्ट से बचा सके। शान्ति और न्याय की प्रतिरक्षाओं का निर्माण मजबूत आधार शिलाओं पर किया जासके, ताकि वसुधैव कुटुम्बकम की संकल्पना के रचनात्मक सांस्कृतिक वादे को पूरा कर सके।