-सतीश कौशिक का कहना था आदमी अगर नाकामी भी हो तो उसे वह करने दो जो वह दिल से चाहता है वह करें।
सतीश कौशिक। प्रसिद्ध निर्देशक। एक्टिंग में महारत हासिल इनका कहना है कि सपना अवश्य देखना चाहिए और उसे पूरा करने के लिए लगातार कोशिश जारी रखनी चाहिए। सफलता अवश्य हासिल होगी। फिल्मों में बदलाव आए हैं जो समय की मांग है। दिल्ली हमारे दिल में है यहीं से सफर की शुरुआत हुई है। संवाददाता मानवेंद्र ने कुछ दिन पहले ही सतीश कौशिक से बातचीत की थी। पेश है उसके कुछ अंश—
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-आप एक एक्टर हैं, कई तरह के रोल तो निभाए ही है खासतौर पर आपने डायरेक्शन मे कई फिल्मों में अपनी पहचान बनाई है। कह सकते हैं फिल्म इंडस्ट्री के कुछेक डायरेक्टर्स में आप आते हैं।
सौ से ऊपर हमने स्टेज शो किया है। फिल्म इंस्टीट्यूट में हमने कोर्स किए हैं हर तरह के रोल किए हैं जिसमें मोहन राकेश के नाटक तक किए हैं। कमेडियन के रूप में भी प्यार मिला है। वह एक्टिंग का एक पार्ट है। इंडस्ट्री को हमने बहुत कुछ दिया है। अपनी कंपनी बनाकर। नए नए कलाकार को मौका देकर। समाज सेवा में तत्पर लगातार रहते हैं। इसी क़ड़ी में दिल्ली के दौरे पर भी हम लगातार होते हैं।
-दिल्ली आपके कितने करीब है। खासतौर मंडी हाउस के बारे में।
दिल्ली मेरे दिल् के करीब है। यहां से ही सबकुछ सीखा है। दिल्ली के करोलबाग से सफर की शुरुआत हुई है। माता-पिता का आशीर्वाद मिला। मेरे करियर में फिल्म इंस्टीट्यूट का ब़ड़ा हाथ है जहां हमारी व्यक्तित्व को निखारा गया। वहां हमने कई चीजें सीखे जिसे गिनाया नहीं जा सकता। हमारे टीचर, ट्रेनर ने हमें ज्ञान दिया जिसकी बदौलत हम अपनी पहचान फिल्म इंडस्ट्री में बना सके।
–नए कलाकार को कहेंगे। कैसे अपने आपको तैयार करें।
नए कलाकारों को तो यही कहना चाहेंगे जो भी बनाना चाहते हैं बस अपने आप में विश्वास रखें। जो भी बनना चाहते हैं उसपर फोकस करें। आपको सफलता हासिल होगी।
सपना देखना जरूरी होता है। सपने देखने में इस बात से ना डरे की आप हार जाएंगें। हार तो तब होती है जब हार मान लेते हैं। सपने देखें ओर उसे पूरा करने के लिए कोशिश करें। जंग जारी रहनी चाहिए।
-दिल्ली के मंडी हाउस को आज आप कैसे याद करेंगे।
मंडी हाउस पर हमने काफी वक्त बिताया है। मंडी हाउस की सड़क सड़क नहीं है इसी ने हमें कला के छेत्र में आज मुकाम तक पहुंचाया है। मंडी हाउस पर एक चाय पीते थे पैसे नहीं देते थे उधार चलता रहता था। फ्रूट का दुकान होता था। अनूपम खैर के साथ हम फ्रूट के दुकान की ओर ना जाकर इंडिया गेट से घुमकर आते थे ताकि पैसे ना देने पड़े। यह जगह हमें बहुत दिया है। 75-78 में हमने एक्टिंग का कोर्स मंडी के पास एनएसडी से किया। मेरी जैसी शक्ल का आदमी फिल्मों में एक्टिंग करेगा तो कोई विश्वास भी नहीं कर सकेगा। लेकिन इसी मंडी हाउस ने हमें सिखाया। मंडी हाउस जब भी आता हूं बहुत सी यादों में खो जाता हूं
-अपने परिवार के बारे में बताएं
हमारे पिताजी हरिसन ताला आपने सुना होगा। उसमें सेल्समैन हुआ करते थे। विभिन्न प्रदेशों में जाकर ऑर्डर लिया करते थे। करोलबाग के नाई वाली गली में हम रहते थे। मध्यवर्गीय परिवार से हम थे। चारपाई पर बैठकर मैं रविवार को अंग्रेजी अखबार पढ़ता था। पिताजी कहते थे बेटा अंग्रेजी बोलेगा। इसलिए रविवार को एचटी लेते थे। स्कूल में फेयरवेल पार्टी के अंदर मोनो एक्टिंग की यहीं से करियर में बदलाव लाया। उसके बाद किरोड़ीमल कॉलेज में एडमिशन लिया। यहीं से तेजी से बदलाव आया।
-किसने आपकी प्रतिभा को पहचाना।
प्रोफेसर ठाकुरदास ने हमारी जिंदगी बदल दी। उन्होंने हमें घर पर बुलाया और कहां कि एक्टिंग में जाओ। मुंबई जाओ। उन्होंने हमारी प्रतिभा को पहचाना। हमने उनसे कहा कि हम तो देखने में भी अच्छा नहीं है। उन्होंने हमे बताया कि तुम बहुत अच्छा एक्टिंग करते हो। तुमको एक्टिंग करो। हमने एनएसडी में एडमिशन लिया।
-सफलता को कैसे देखते हैं।
सफलता को हम दूसरे रूप में देखना चाहिए। जिंदगी में कई तरह की चीजें आती है। अपने गोल को आगे बढ़ाते रहना चाहिए। शोकत आजमी के साथ हमने एक नाटक किया था। उसमें बड़ी अच्छी लाइन थी। आदमी अगर नाकामी भी हो तो उसे वह करने दो जो वह दिल से चाहता है वह करें।
सपने देखें और इस बात से ना डरे की आप हार जाएंगें-सतीश कौशिक,डायरेक्टर
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