- हुकुम सिंह कमेटी ने तीन श्रेणियों में ओबीसी आरक्षण का दिया था सुझाव
- जस्टिस राघवेंद्र कमेटी की रिपोर्ट नहीं हुई सार्वजनिक
यूपी की आवाज
लखनऊ। यूपी में 22 साल पहले ओबीसी की आबादी 54.05 फीसदी थी। बीजेपी की तत्कालीन राजनाथ सिंह सरकार ने सामाजिक न्याय समिति से सर्वे कराया था।
ग्रामीण जनसंख्या पर आधारित आकलन में अनुसूचित जाति की आबादी 29.94 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति की आबादी 0.06 प्रतिशत बताई गई थी।बिहार में जातीय जनगणना के बाद यूपी में सिर्फ सभी विपक्षी दल ही नही एनडीए में शामिल कुछ घटक दल भी इस मुद्दे को गरमा रहे हैं। वर्ष 2001 में यूपी के पिछड़े व दलित वर्गों के बीच आरक्षण की व्यवस्था का किन्हें कितना लाभ मिला, इसका आकलन तत्कालीन राजनाथ सरकार ने करवाया था। इस सरकार के संसदीय कार्यमंत्री हुकुम सिंह की अध्यक्षता में 28 जून 2001 को सामाजिक न्याय समिति का गठन किया गया। तत्कालीन स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री रमापति शास्त्री समिति के सह अध्यक्ष और विधान परिषद सदस्य दयाराम पाल सदस्य थे।
समिति ने परिवार रजिस्टर के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए रिपोर्ट दी। बिहार की मौजूदा जनगणना में सामान्य वर्ग की आबादी 15.52 फीसदी बताई गई है। वहीं हुकुम सिंह समिति ने यूपी में इसे अन्य वर्गों की ग्रामीण जनसंख्या की श्रेणी में रखते हुए 20.95 फीसदी बताया था। राजनाथ सिंह सरकार ने सामान्य वर्ग के गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों के लिए सेवायोजन और शिक्षण संस्थाओं के प्रवेश में पांच प्रतिशत काआरक्षण देने के लिए केंद्र सरकार से अनुरोध का निर्णय लिया था।जिस तरह से बिहार में वर्तमान में सर्वाधिक आबादी यादव जाति की है। उसी तरह हुकुम सिंह कमेटी ने भी रिपोर्ट में कहा था कि यूपी में पिछड़ों में सर्वाधिक 19.40प्रतिशत आबादी यादवों की है। जनसंख्या के लिहाज से पिछड़ों में यादवों के बाद कुर्मी, लोध, गड़ेरिया, मल्लाह-निषाद, तेली, जाट, कुम्हार, कहार-कश्यप, कुशवाहा-शाक्य, हज्जाम-नाई, भर-राजभर, बढ़ई, लोनिया-नोनिया, मौर्य, फकीर, लोहार, गुर्जरों का नंबर इसी घटते क्रम में बताया गया था। हुकुम सिंह समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि पिछड़े वर्ग की सभी 79 जातियों में जहां यादव, कुर्मी व जाटों को अधिक लाभ मिला, वहीं केवट, मल्लाह, निषाद, मोमिन, कुम्हार, प्रजापति, कहार, कश्यप, भर व राजभर जातियां अपेक्षित लाभ से वंचित हैं। इस समिति ने पिछड़ी जातियों को तीन श्रेणियों क्रमशः पिछड़ी जाति, अति पिछड़ी जाति व अत्यंत पिछड़ी जाति में विभाजित कर इन्हें क्रमशः 5, 8 व 14 प्रतिशत कोटा देने का सुझाव दिया लेकिन मसला कानूनी दांव-पेंच में फंसकर रह गया।योगी आदित्यनाथ-1 सरकार ने अति पिछड़ों को ओबीसी आरक्षण के भीतर आरक्षण के लिए जस्टिस राघवेंद्र कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने रिपोर्ट राज्य सरकार को दे दी थी, जिसे सार्वजनिक नहीं की गई। कुछ भी हो जातीय जनगणना को विपक्षी दल यानि “इंडिया” गठबंधन सियासी मुद्दा बना रहा है, जो 2024 में चुनावी बहस और अभिभाषण का विषय बनकर सामने आने वाला है।