देश-दुनियाँ

निजी अस्पताल में 60 हजार हो गया था खर्च, सरकारी अस्पताल में मुफ्त हुआ इलाज

-धोरैया के कुर्मा के रहने वाले सगीर मंसूरी एक साल पहले आ गए थे टीबी की चपेट में
-निजी अस्पताल में ठीक नहीं हुए तो सरकारी अस्पताल में इलाज कराकर हो गए स्वस्थ

बांका, 4 दिसंबर-

जिले को 2025 तक टीबी से मुक्त बनाना है। इसे लेकर तमाम तरह के कार्यक्रम चल रहे हैं। साथ ही सरकारी अस्पतालों में इलाज की व्यवस्था भी बेहतर की गयी है। इसी का परिणाम है कि सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने के बाद काफी संख्या में मरीज ठीक हो रहे हैं। धेरैया प्रखंड के कुर्मा गांव के रहने वाले सगीर मंसूरी को ही ले लीजिए। एक साल पहले टीबी की चपेट में आ गए थे। पहले इस भ्रम में रहे कि निजी अस्पताल में बेहतर इलाज होता है। लेकिन काफी दिनों तक इलाज कराने के बाद भी ठीक नहीं हुए तो सोच में पड़ गए। इस दौरान उनका 60 हजार रुपये भी खर्च हो गया था। आर्थिक स्थिति उतनी बेहतर नहीं थी कि और पैसा खर्च कर सकें। इसलिए आखिरकार स्थानीय लोगों की सलाह पर सरकारी अस्पताल गए। धोरैया स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जब गए तो वहां लैब टेक्नीशियन शंभूनाथ झा ने जांच की। रिपोर्ट में टीबी होने की पुष्टि हुई। इसके बाद इलाज शुरू हुआ। लगभग छह महीने तक सगीर ने नियमित तौर पर टीबी की दवा का सेवन किया तो ठीक हो गए। अब वह पूरी तरह से स्वस्थ हैं और सामान्य जीवन जी रहे ।
जांच से लेकर इलाज तक में कोई पैसा नहीं लगाः सगीर मंसूरी कहते हैं कि जब मुझे टीबी के लक्षण दिखाई पड़े तो मैं यह सोचकर निजी अस्पताल चला गया कि वहां पर बेहतर इलाज होता होगा, लेकिन लगातार इलाज कराने के बाद भी मेरे स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ। पैसे भी खर्च हो रहे थे। मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूं। थक हारकर मैं सरकारी अस्पताल गया और वहां के इलाज से मैं ठीक हो गया। सरकारी अस्पताल में इलाज को लेकर मेरा एक भी पैसा नहीं लगा। जांच और इलाज तो मुफ्त में हुआ ही, साथ में दवा भी मुफ्त में मिली। साथ ही जब तक मेरा इलाज चला, तब तक पौष्टिक आहार के लिए मुझे पांच सौ रुपये प्रतिमाह सहायता राशि भी मिली। अब मैं अन्य लोगों से भी किसी भी बीमारी का इलाज सरकारी अस्पताल में ही कराने की सलाह देता हूं। टीबी का तो निश्चित तौर पर।
सरकारी अस्पताल में इलाज कराने पर पहले होंगे ठीकः लैब टेक्नीशियन शंभूनाथ झा कहते हैं, काश सगीर पहले ही इलाज कराने के लिए सरकारी अस्पताल आ जाते। उनका पैसा भी खर्च नहीं होता और काफी पहले ठीक हो जाते। लोगों को यह भ्रम दूर करना होगा कि निजी अस्पताल में बेहतर इलाज होता है। सरकारी अस्पताल में टीबी का तो बेहतर इलाज होता ही है, साथ में अन्य बीमारियों के इलाज की भी बेहतर व्यवस्था है। इसलिए लोगों से मैं यही अपील करना चाहता हूं कि कोई भी बीमारी हो तो पहले सरकारी अस्पताल ही इलाज के लिए आएं। टीबी के मरीज तो निश्चित तौर पर। पहले इलाज शुरू होगा तो जल्द ठीक होइएगा।

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