राजनीती

अखिलेश क्या 2024 तक बचा पाएंगे अपने महागठबंधन का कुनबा

लखनऊ, यूपी की आवाज।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का चुनावी रण खत्म होने के बाद अब उत्तर प्रदेश में राजनीति का नया समीकरण बनना शुरू हो गया हैं।चुनावी रण से पहले सपा मुखिया अखिलेश यादव ने यूपी में महागठबंधन कर चुनौती देने का भरपूर प्रयास किया,लेकिन वो नाकाम साबित हुए।अब चुनावी रण के बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन गई और अखिलेश यादव विपक्ष के नेता बन गए।अखिलेश यादव के सहयोगियों को खाली हाथ रहना पड़ा।अब अखिलेश यादव के सामने असली चुनौती अपने महागठबंधन के सहयोगियों को एक साथ रखने की है,क्योंकि कई नेताओं के सुर चुनावी रण के परिणाम के बाद ही बदल गए हैं।

चुनावी रण के बाद भाजपा ने यूपी में ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए लगातार दूसरी पूर्ण बहुमत के साथ अपनी सरकार बनाई। यूपी की भाजपा सरकार में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने तो अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी दूसरे नंबर पर रहने के कारण विपक्ष की कुर्सी उनके हाथों में चली गई।अखिलेश यादव तो नेता विपक्ष तो बन गए,लेकिन सहयोगियों को कुछ नहीं मिला लिहाजा अब ये सहयोगी अपने सुर बदलने शुरू कर दिए हैं। दरअसल ऐसी हालत में सहयोगियों का 5 साल विपक्ष में खाली हाथ बैठे रहना मुश्किल होगा। लिहाजा अब वो अपनी संभावनाएं तलाशने में पीछे नहीं रहेंगे।

चुनावी रण का परिणाम आने के बाद भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला है।लिहाजा अब भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव के चुनावी रण को लेकर अपनी रणनीति बनाने में जुट गई है। भाजपा को भी इस बात का अंदाजा है कि अखिलेश यादव के सहयोगियों को आसानी से तोड़ा जा सकता है। जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव का चुनावी रण नजदीक आएगा वैसे-वैसे सहयोगियों में फूटन पड़ने की आशंका जताई जा रही हैं। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अखिलेश यादव के कई सहयोगियों ने अपना सुर बदलना शुरू कर दिया हैं।भाजपा उन नेताओं को कई तरह से एडजस्ट कर सकती है। चूंकि उसकी सरकार है तो बहुत सारी ऐसी जगहें हैं जहां उन्हें आसानी से पद देकर संतुष्ट कर सकती है।

राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया जयंत चौधरी भी चुनावी रण के बाद अब नए सिरे पर अपनी रणनीति पर विचार करने के लिए विवश हो रहे हैं। हालांकि जयंत चौधरी ने ये बयान दिया था कि वो अखिलेश यादव का साथ नहीं छोड़ेंगे,लेकिन भाजपा सूत्रों की माने तो भाजपा को भी जयंत चौधरी की बहुत जरूरत है और लोकसभा चुनाव के चुनावी रण से पहले जयंत को साधने की हर मुमकिन कोशिश करेगी। चुनावी रण से पहले अखिलेश यादव से हुए गठबंधन के अनुसार जयंत राज्यसभा जाएंगे। दूसरी ओर जयंत चंद्रशेखर के सम्पर्क में भी हैं और नए समीकरण की टोह ले रहे हैं।

विधानसभा के चुनावी रण से पहले सबसे ज्यादा चर्चा भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी के मुखिया ओम प्रकाश राजभर की थी।राजभर ने अखिलेश यादव के साथ मिलकर पूर्वांचल के कई जिलों में भाजपा के छक्के छुड़ा दिए। चुनावी रण का जब परिणाम आया तो पूर्वांचल में भाजपा काफी कमजोर साबित हुई।भाजपा को भी पता है कि जिस तरह से पश्चिम में जयंत चौधरी की जरूरत है उसी तरह पूर्वांचल में राजभर के बिना भाजपा की गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती है। चुनावी रण का परिणाम आने के बाद ऐसी खबर आई थी कि राजभर की केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई है।बैरहाल भाजपा के सूत्र भी यह बता रहे हैं कि दोनों के बीच मुलाकात हुई है। भाजपा के खिलाफ राजभर के सुर भी नरम पड़ गए हैं। इससे लगता है कि राजभर भी अपने लिए जगह खोज रहे हैं।बैरहाल मीटिंग से इनकार किया लेकिन सूत्र कह रहे हैं कि बातचीत हुई है। इन दिनों योगी सरकार को लेकर राजभर के बयानों पर नजर डालने से पता चलता है कि वह अब पुरानी कड़वाहट को भूलना चाहते हैं।

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