सेहत

एचआईवी पॉजिटिव गर्भवती महिला से उसके बच्चे में भी एचआईवी का खतरा

– सावधानी से हो सकती है बच्चे की सुरक्षा संभव
मुंगेर, 18 अप्रैल-
एचआईवी एड्स एक लाइलाज बीमारी है ,जिसमें सावधानी बरतने के बाद ही खुद को सुरक्षित रखा जा सकता है। यदि सावधानी नहीं बरतते हुए समय से इलाज शुरू नही कराते हैं तो एचआईवी पॉजिटिव ब्यक्ति की  मौत भी हो सकती है। हालांकि एड्स से लोगों को बचाने के लिए केंद्र सरकार के साथ- साथ राज्य सरकार द्वारा भिन्न-भिन्न प्रकार के कार्यक्रम चलाकर लोगों के बीच जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। सरकारी संस्थाओं के अलावा कई निजी संस्थान के द्वारा भी एड्स से बचाव को लेकर जागरूकता अभियान चला कर लोगों को एड्स के कारण, लक्षण तथा बचाव के उपाय बताए जा रहे हैं। एड्स संक्रमितों में पुरुषों के साथ- साथ महिलाएं भी शामिल हैं। हालांकि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या कम है। इसका मुख्य वजह यह माना जाता है कि सेक्स के लिए महिलाएं कहीं बाहर नहीं जाती जबकि पुरुष अपनी पत्नी या पार्टनर के अलावा बाहर में भी एक से अधिक महिलाओं के बीच यौन संबंध बना लेते हैं। ऐसे में यदि महिला एचआईवी पॉजिटिव हुई तो पुरुष भी एचआईवी संक्रमित हो जाता  और जब वह पुरुष अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध बनाते हैं तब उनकी पत्नी भी संक्रमित हो जाती हैं।
एचआईवी संक्रमित गर्भवती महिलाओं से उनके बच्चे को भी खतरा :
जिला एचआईवी/टीबी समन्वयक शलेन्दु कुमार ने बताया कि यदि कोई गर्भवती महिला एचआईवी संक्रमित है तो इससे उसके बच्चे को भी एचआईवी पॉजिटिव होने का खतरा ज्यादा बन जाता है। उन्होंने बताया कि एचआईवी पॉजिटिव गर्भवती महिला के गर्भस्थ बच्चे के भी एचआईवी पॉजिटिव होने का खतरा ज्यादा होता है। पहले इसकी संभावना 90 प्रतिशत से अधिक थी। हालांकि अभी भी यह संभावना 70 से 80 प्रतिशत है। क्योंकि गर्भस्थ बच्चा अपने पोषण के लिए मां पर ही निर्भर होता है। ऐसे में उसके संक्रमित होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। इसके साथ ही मां का दूध भी संक्रमण का कारण बन सकता है। यदि थोड़ी सावधानी बरती जाए तो गर्भस्थ बच्चे को एचआईवी पॉजिटिव होने से काफी हद तक बचाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि पहले इसकी संभावना कहीं ज्यादा थी लेकिन अब कुछ दवाओं की वजह से इस बीमारी को बच्चे में फैलने से रोकने में काफी हद तक सफलता मिली है। उन्होंने बताया कि प्रसव के बाद बच्चे को नेफ्रासिन नामक सिरप लगातार 3 महीने तक दिया जाता है क्योंकि प्रसव के बाद नवजात अपनी मां का दूध पीते हैं ऐसे में बच्चे एचआईवी संक्रमित ना हो जाए इसके लिए यह दवा दी जाती है। इस दवा से काफी हद तक बच्चों को सुरक्षित रखा जा सकता है। उन्होंने बताया कि 1 साल की उम्र तक 3 से 4 बार उक्त बच्चे का एचआईवी जांच की जाती है। यदि 1 साल के बाद बच्चे में एचआईवी के लक्षण नहीं मिले तो उक्त बच्चे में अब एचआईवी पॉजिटिव होने का खतरा नहीं होता है।
एचआईवी पॉजिटिव गर्भवती महिलाएं बरते ये सावधानी :
उन्होंने बताया कि गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिलाओं को अधिक से अधिक पौष्टिक आहार लेना चाहिए। क्योंकि उन्हीं से ही उनके गर्भ में पल रहे बच्चों को पोषक तत्व मिलता है। बच्चे को जितना पोषक तत्व मिलेगा बच्चा उतना ही स्वस्थ रहेगा।

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