देश-दुनियाँ

प्रवासी एवं हाशिये पर रह रहे लोगों को टीबी से सुरक्षा के लिए किया जा रहा जागरूक- डॉ. बी. के. मिश्र

 

• “ब्रेकिंग द बैरियर्स” प्रोजेक्ट के तहत राज्य के 3 जिलों में अध्यन के नतीजों पर हुई बैठक में चर्चा
• केयर इंडिया के सहयोग से चिन्हित समुदाय में जगायी जा रही है टीबी से सुरक्षा की अलख
• भागलपुर, पुर्णिया एवं पश्चिमी चंपारण में किया गया अध्ययन
पटना/ 27 नवंबर- “टीबी के सबसे ज्यादा मरीज समुदाय के अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यकों एवं प्रवासी मजदूरों में पाए जाते हैं. कर्नाटक हेल्थ प्रमोशन ट्रस्ट द्वारा संचालित “ब्रेकिंग द बैरियर्स” प्रोजेक्ट के तहत यह पाया गया है कि समुदाय के इन लोगों को टीबी के बारे में जागरूक करने की जरुरत है. सोशल मीडिया की मदद से भी ऐसे चिन्हित समुदाय को जागरूक किया जा सकता है”, उक्त बातें राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, यक्ष्मा डॉ. बी. के. मिश्र ने “ब्रेकिंग द बैरियर्स” प्रोजेक्ट के अध्ययन के नतीजों का आंकलन करने के लिए बुलाई गयी बैठक के दौरान कही. उक्त बैठक में डॉ. बी. के. मिश्र, केयर इंडिया के संजय सुमन, विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉ. उमेश त्रिपाठी, भागलपुर, पुर्णिया एवं पश्चिमी चंपारण के जिला यक्ष्मा पदाधिकारी, “ब्रेकिंग द बैरियर्स” प्रोजेक्ट की प्रमुख रेहाना बेगम सहित अन्य लोग मौजूद थे.
3 जिलों में किया गया अध्ययन:
डॉ. बे. के. मिश्र ने बताया कि समुदाय के जो भी लोग निक्षय मित्र बनने के लिए आगे आये हैं उन्हें अपने क्षेत्र में प्रवासी एवं हाशिये पर रह रहे लोग जिन्हें टीबी रोग है उन्हें गोद लेने की पहल करनी चाहिए. इससे इन समुदायों में टीबी को लेकर जागरूकता बढ़ेगी. डॉ. मिश्र ने बताया कि प्रोजेक्ट के तहत भागलपुर जिले में शहर में रह रहे अनुसूचित जाति एवं अल्पसंखकों तथा पुर्णिया एवं पश्चिमी चंपारण में प्रवासी मजदूरों पर यह अध्ययन किया गया है. उन्होंने कहा कि चिन्हित समूह के लोग टीबी के लक्षणों को हमेशा पहचान नहीं पाते हैं और झोलाछाप चिकित्सकों के चक्कर में अपनी सेहत से खिलवाड़ करते हैं.
समुदाय से उपेक्षित होना का है भय:
डॉ. मिश्र ने बताया कि अध्ययन के नतीजों से स्पष्ट है कि इन समूह के लोगों को टीबी से ग्रसित होने पर समुदाय द्वारा कलंकित होने का भय सताता है. इसके कारण लोग अपने रोग को छिपाकर अपनी जिंदगी को खतरे में डाल रहे हैं. सामुदायिक स्तर पर इन लोगों को जागरूक करने की जरुरत है ताकि राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यकरण के तहत राज्य में 2025 तक इस रोग का उन्मूलन किया जा सके. अध्ययन में आये नतीजों को गंभीरता पूर्वक लेकर सभी को एक साथ सामूहिक प्रयास करने की जरुरत है.

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