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आचार्य चंदनाश्री जी एक विशिष्ट व्यक्तित्व

 

जिन्हें हम सब अत्यंत प्रेम ओर आदर से ताई मां कहकर बुलाते हैं। 85 साल की उम्र में वह एक जीवंत और ऊर्जावान जैन साध्वी हैं, जिन्होंने लाखों लागों के जीवन को छुआ है। भारत के बिहार राज्य में 50 वर्ष पूर्व पूज्य ताई मां द्वारा स्थापित वीरायतन देश-विदेश में 25 केंद्रों द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जन-कल्याणकारी कार्यों में कार्यरत हैं। वीरायतन के संस्थापक और आध्यात्मिक प्रमुख के रूप में पूज्य ताई मां का मिशन सेवा, शिक्षा ओर साधना के माध्यम से लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाना है। 1987 में पूज्य ताई मां को जैन संत समुदाय द्वारा आचार्य पद की प्रतिष्ठित उपाधि प्रदान की गई। भगवान महावीर के समय से ढाई हजार वर्ष के इतिहास में वे प्रथम साध्वी हैं जिन्हें आचार्य पद से सुशोभित किया गया है।

26 जनवरी 1937 में जन्मे आचार्यश्री जी की आध्यात्मिक यात्रा तब शुरू हुई जब उन्होंने 14 साल की छोटी सी आयु में सन्यास ग्रहण किया। दीक्षित जीवन के प्रथम 12 वर्ष उन्होंने मौन-साधना में रहने का संकल्प किया ओर इस अवधि के दौरान उन्होंने जैन, बौद्ध ओर वैदिक ग्रंथों का व्यापक अध्ययन किया। इन वर्षों में पूज्य ताई मां ने भारतीय विद्या भवन से दर्शनाचार्य, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से व्याकरण और नव्य न्याय विषय में शास्त्री की उपाधि जैसी कई डिग्रियां प्राप्त की।

विविध शास्त्रों पर गहन चिंतन-मनन करने के पश्चात् उन्होंने विचार किया कि धर्म का उद्देश्य मात्र स्वयं के आनंद की खोज करने का नहीं है, बल्कि सामान्य जीवन की चुनौतियों को हल करने ओर दूसरों के दैनिक जीवन में शांति का आनंद लाने के उद्देश्य भी धर्म का है। इस विचार ने उन्हें धर्म को कर्म के साथ जोड़ते हुए करुणा-पथ का अनावरण करने के लिए प्रेरित किया। एक जैन साध्वी के लिए व्यक्तिगत रूप से सेवा-कार्य में सलंग्न होना अभूतपूर्व था। अत्यंत साहस एवं दृढ़ निश्चय से उन्होंने जैन धर्म के इतिहास में पहली बार दीक्षित वर्ग को सेवा के मार्ग की ओर प्रशस्त किया।

1972 में बिहार राज्य से वीरायतन का कार्य प्रारंभ हुआ। राजगीर पहुंचने के बाद आचार्य श्रीजी के सामने एक के बाद एक कई चुनौतियां आईं,जिसमें डकैतों द्वारा किए हमले भी शामिल थे, पर वे अपने संकल्प से पीछे नहीं हटे। गत 50 वर्षों से वीरायतन उत्तम शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल ओर आपदाग्रस्त क्षेत्रों को फिर से जीवंत करने के माध्यम से लाखों वंचित बच्चों, महिलाओं और पुरुषों के जीवन का आधार बना है।

शिक्छा द्वारा समाज को सशक्त बनाना आचार्य श्रीजी का सर्वोपरि लक्छय रहा है क्योंकि उनके अनुसार पीढ़ी पर पीढ़ी गरीबी के चक्र को तोड़ने का यही एकमात्र उपाय है। जहां जिनालय वहां विद्यालय-जहां एक मंदिर है, वहां एक स्कूल होना ही चाहिए, इस विचार के साथ उनका लक्ष्य तीर्थ स्थलों पर अच्छी गुणवत्ता वाले स्कूल बनाना है और इस श्रृंखला में उन्होंने बिहार, गुजरात, राजस्थान, नेपाल ओर कई अन्य स्थानों में अत्याधुनिक शैक्षिक केंद्रों की स्थापना की है।

युवाओं को शिक्षित ओर सशक्त बनाने की उनकी दृष्टि से ग्रामीण भारत में कई उच्च शिक्षण संस्थान भी स्थापित किए गए हैं। इन शैक्षिक कार्यक्रमों से अब तक दो लाख से अधिक बच्चे ओर युवा लाभान्वित हो चुके हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में बिहार ओर पालिताना में नेत्र अस्पताल स्थानीय आबादी को उत्कृष्ट चिकित्सा सेवाएं प्रदान करते हैं, जिसमें 3.5 लाख लोगों का इलाज किया जाता है और 3 लाख नेत्र शल्य चिकित्सा की जाती है। आचार्य श्री जी की गहन करुणा, संवेदनशीलता ओर त्वरित निर्णय क्षमता के कारण ही कच्छ और नेपाल भूकंप, बाढ़, सूनामी और हाल ही में कोविड महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से आपातकालीन राहत कार्यक्रमों की शुरुआत अविलंब हो सकी।

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी आचार्य श्री जीजैन दर्शन पर गहन विचारक और लेखक के रूप में प्रशंसित हैं। एक अप्रतिम कला मर्मज्ञ के रूप में उन्होंने वीरायतन राजगीर में एक सुंदर संग्रहालय का भी सृजन किया है। पूज्य ताई मां ने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न आध्यात्मिक केंद्रों की स्थापना ओर नियमित यात्राओं के माध्यम से हजारों लोगों को प्रेरित ओर आध्यात्मिक रूप से निर्देशित किया है।

मानव सेवा के प्रति उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें महावीर फाउंडेशन पुरस्कार, श्री देवी अहिल्या राष्ट्रीय पुरस्कार, जैना प्रेसीडेंशियल अवार्ड, द सेंट ऑफ मॉडर्न इंडिया, सूर्यदत्ता नेशनल लाइफ टाइम अचीवमेंट जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया है। पूज्य ताई मां को अमेरिका ने भी दो पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया है। न्यूयार्क राज्य की और से सीनेटर अन्ना एम कप्लान ने एक उद्घोषणा जारी करते हुए सार्वजनिक रूप से घोषित किया कि आचार्य श्रीजी के रूप में उनके पास सर्वोच्च सम्मान के योग्य व्यक्ति हैं।

 

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