देश-दुनियाँ

टीबी होने पर शुरुआत में ही चले जाएं सरकारी अस्पताल

-जांच से लेकर इलाज और दवा तक की है मुफ्त व्यवस्था
-शुरुआत में इलाज होने पर जल्द टीबी से ठीक भी हो जाएंगे
बांका-
बाराहाट प्रखंड की मखनपुर पंचायत के नारायणपुर गांव के रहने वाले विकास यादव 2019 की शुरुआत में बीमार रहने लगे। वह खांसी से परेशान थे। पहले वह निजी अस्पताल गए, लेकिन वहां के इलाज से वह स्वस्थ नहीं हो पाए। इसके बाद भागलपुर स्थित मायागंज अस्पताल में इलाज कराने के लिए चले गए। वहां पर उन्हें 26 दिनों तक भर्ती रहना पड़ा। आखिरकार वहां उन्हें सलाह मिली कि आप अपने जिला स्थित यक्ष्मा केंद्र जाइए और वहां पर डीपीएस गणेश झा से मिलिए। इसके बाद विकास यादव, गणेश झा से मिले। फिर विकास यादव की जांच हुई और नए सिरे से इलाज शुरू हुआ। 24 महीने तक दवा का नियमित सेवन किया तो विकास यादव ने टीबी को मात दी। कहने का मतलब यह है कि अगर आपको टीबी के लक्षण दिखाई पड़े तो आप बजाय इधर-उधर भटकने के  अपने नजदीकी  सरकारी अस्पताल जाएं। वहां पर जांच, इलाज और दवा तक की मुफ्त व्यवस्था है। साथ ही अपने अंदर से इस बात को बाहर निकाल फेंकिए कि सरकारी अस्पतालों में बेहतर इलाज नहीं होता है। कई मामलों में देखा गया है कि निजी अस्पताल वाले भी सरकारी अस्पताल ही इलाज के लिए मरीजों को भेजते हैं। यहां पर आपको पैसे की भी बचत होती है और भरोसे वाला इलाज मिलता है।
निजी अस्पताल जाकर गलती कीः विकास यादव कहते हैं कि शुरुआत में मेरे से गलती जरूर हुई। मैं इलाज के लिए निजी अस्पताल चला गया। वहां पर सिर्फ पैसे की बर्बादी हुई। मेरे स्वास्थ्य में कोई खास सुधार नहीं हुआ। इसके बाद में क्षेत्र के सबसे बड़े अस्पताल मायागंज चला गया। वहां पर मेरा इलाज शुरू हुआ, लेकिन वहां से भी मुझे जिला यक्ष्मा केंद्र जाने के लिए कहा गया। जिला यक्ष्मा केंद्र आया तो यहां पर मेरी मुलाकात डीपीएस गणेश झा जी से हुई। उन्होंने मेरा सही मार्गदर्शन किया और इसके बाद इलाज शुरू हो सका। अब जाकर मैं स्वस्थ हूं। अगर कोई परेशानी होती है तो मैं गणेश झा जी संपर्क करता हूं। वह मेरा सही मार्गदर्शन करते हैं। अब तो मैं अन्य लोगों को भी इलाज के लिए सरकारी अस्पताल जाने की ही सलाह देता हूं। साथ ही टीबी को लेकर लोगों को जागरूक करने का भी काम करता हूं।
सरकारी अस्पतालों में होता है टीबी का बेहतर इलाजः जिला ड्रग इंचार्ज राजदेव राय कहते हैं कि लोगों को यह भ्रम तोड़ना होगा कि निजी अस्पताल में बेहतर इलाज होता है। जिला यक्ष्मा केंद्र में कई ऐसे मरीज आए, जो पहले निजी अस्पताल में इलाज कराकर थक गए थे, लेकिन वह ठीक नहीं हो पाए थे। जब जिला यक्ष्मा केंद्र में उनलोगों का इलाज हुआ तो वे लोग स्वस्थ होकर गए। सबसे अच्छी बात यह है कि सरकारी अस्पतालों में जो लोग टीबी का इलाज कराते हैं, उनकी लगातार निगरानी भी की जाती है। जब तक दवा चलती है, उन्हें पोषण के लिए राशि भी मिलती है। इसलिए अगर किसी को टीबी के लक्षण दिखाई दे तो वह सीधा सरकारी अस्पताल का ही दरवाजा खटखटाएं।

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