यूपी की आवाज
लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा व विधान परिषद सचिवालय में भर्ती के मामले में सरकार में बैठे कई प्रमुखों की संलिप्तताएं सामने आ रही हैं। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो जिस कम्पनी के जरिये परीक्षा करायी गई है, उसका पंजीयन 2019 में हुआ है, जबकि उसका अनुभव प्रमाण-पत्र 2017 का दिखाया गया है। सूत्र बताते हैं कि सीबीआई इस एंगल पर भी जांच कर रही है कि ब्लैक लिस्टेड टीएसआर डाटा प्रोसेसिंग प्रा.लि.कंपनी को किसके दबाव में यह काम मिला।
सूत्र बताते हैं कि सीबीआई की जांच में ऑनलाइन परीक्षा परिणाम में मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर विधानसभा एवं विधान परिषद के अधिकारियों के दबाव में मनमाफिक परिणाम निकालकर भर्ती की रेवड़ियां बांटी गईं। इसमें विधानसभा के प्रमुख सचिव प्रदीप दुबे के भतीजे शलभ दुबे व पुनीत दुबे, विधान परिषद के प्रमुख सचिव राजेश सिंह के बेटे अरवेंदु और अरचेंधु सिंह, अजय सिंह के बेटे अभय प्रताप सिंह, रितेश पाण्डेय, संसदीय कार्य के प्रमुख सचिव जे.पी.सिंह के बेटे शिवम सिंह एवं शिवाजी सिंह, टीएसआर डाटा प्रोसेसिंग प्रा.लि.कंपनी के निदेशक आशीष राय के संबंधी साकेत राय एवं सेठी राय, दूसरे निदेशक की पत्नी भावना यादव, उप लोकायुक्त डी. के. सिंह के पुत्र अविनाश कुमार, विकास अवस्थी, सरकार में प्रमुख पदों पर बैठे एक अपर मुख्य सचिव के सिफारिश पर पुनीत वाजपेयी, अलिशा गुप्ता, अभिषेक शुक्ल समेत 12 लोगों की विभिन्न पदों पर नियुक्ति की गई है।
इतना ही नहीं तात्कालीन विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित के निजी सहायक पंकज मिश्र की ओएसडी के पद पर हुई नियुक्ति पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। इसके अलावा शासन और विधानसभा सचिवालय में कार्यरत अधिकारियों के रिश्तेदारों को भी सहायक समीक्षा अधिकारी और समीक्षा अधिकारी बनाया गया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट लखनऊ खण्डपीठ में दाखिल याचिका में बताया गया है कि किस तरह अयोग्य अभ्यर्थियों का चयन किया गया है। परीक्षा में लोक सेवा आयोग या सचिवालय सेवा के भर्ती नियमों का पालन भी नहीं हुआ। याचिका में विभिन्न पदों पर करीब 26 कर्मियों की नियुक्ति को याचिकाकर्ता ने नियमों की अनदेखी करते हुए भर्ती किया जाना बताया गया है।
गौरतलब है कि वर्ष 2020-21 में विधानसभा एवं विधान परिषद में रिक्त पदों पर भर्तियां की गई थी, जिसके चलते विधान सभा में 95 पदों पर भर्ती की गई, इनमें समीक्षा अधिकारी के 20, सहायक समीक्षा अधिकारी के 23, एपीएस के 22, अनुसेवक के 12, रिपोर्टर के 13 और सुरक्षा गार्ड के 05 पदों पर भर्ती हुई, जबकि विधान परिषद में विभिन्न श्रेणी के 100 पदों पर भर्तियां की गई।
उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद सचिवालय में हाल ही में हुईं विभिन्न पदों पर भर्तियों की सीबीआई जांच का आदेश दिया है। शुरुआती जांच की रिपोर्ट छह हफ्ते में पेश करने को भी कहा है।
यह आदेश न्यायमूर्ति एआर मसूदी और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ल की खंडपीठ ने सुशील कुमार व दो अन्य की विशेष अपील के साथ विपिन कुमार सिंह की याचिका पर दिया। कोर्ट ने इस धांधली मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका (पीआईएल) के रूप में दर्ज करने का भी आदेश दिया है।