उत्तर प्रदेश राजनीती

केंद्रीय पदाधिकारियों से अनबन खाबरी को पड़ा भारी, एक साल भी नहीं रह पाये प्रदेश अध्यक्ष

यूपी की आवाज

लखनऊ। आखिर तेज दौड़ लगाने के चक्कर में बृजलाल खाबरी को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी गंवानी पड़ी। उन्हें यह पद एक अक्टूबर 2022 को मिला था। इससे पहले अजय कुमार लल्लू के इस्तीफा देने के बाद छह माह तक अध्यक्ष पद खाली था। बृजलाल खाबरी के अध्यक्ष बनने पर यह संदेश गया कि कांग्रेस अब अपनी पकड़ दलित वर्ग में बढ़ाना चाहती है। खाबरी ने सक्रियता भी दिखाई, लेकिन इसी सक्रियता के कारण उनकी केंद्रीय कमेटी के पदाधिकारियों से ठनती गयी।

कांग्रेस के सूत्रों की मानें तो बृजलाल खाबरी से केंद्रीय नेतृत्व खफा इस कारण कि ये स्थानीय निर्णयों में राय-मशविरा नहीं करते थे और स्वयं ही निर्णय ले लेते थे। इस कारण इस बीच चार माह से केंद्रीय नेतृत्व से खटास चल रहा था, जिसकी परिणति गुरुवार को देखने को मिली और उनकी जगह अजय राय को पदभार सौंप दिया गया। अब लोकसभा चुनाव नजदीक है। आने वाले चुनाव में कार्यकर्ताओं को अजय राय कितना सक्रिय कर पाते हैं, यह तो आने वाल समय बताएगा।

जहां तक बृजलाल खाबरी के राजनीतिक सफर का सवाल है तो उनका राजनीतिक सफर बसपा से शुरू हुआ था। उनकी गिनती बुंदेलखंड के बसपा के कद्दावर नेताओं में होती थी। खाबरी 1999 में जालौन-गरौठा सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। बसपा के टिकट पर 2004 का भी लोकसभा चुनाव लड़े थे, लेकिन हार का स्वाद चखना पड़ा था। साल 2008 में बसपा ने उन्हें राज्यसभा पहुंचाया था। 2014 में जालौन-गरौठा सीट से बसपा लोकसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे।

इसके बाद खाबरी साल 2016 में कांग्रेस में शामिल हो गए थे। इसके बाद उन्हें लगातार हार का ही सामना करना पड़ा। बसपा सरकार में अपनी राजनीति का सिक्का जमाने वाले बृजलाल खाबरी को मिनी सीएम कहा जाता था, क्योंकि एक बार झांसी में हुई जनसभा के दौरान खुद में बसपा सुप्रीमो मायावती ने तारीफ करते हुए कहा था कि मैं किसी जिले में जाऊं या ना जाऊं लेकिन मेरे नाक कान बृजलाल खाबरी ही है जिले में क्या गतिविधियां होती हैं यह मुझे बखूबी पता चलती है। बीएसपी में वह राष्ट्रीय महासचिव भी रहे हैं।

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