पाकिस्तानी शरणार्थियों को उत्तर प्रदेश में मिलेगा जमीन का अधिकार, शासन को सौंपी गई रिपोर्ट – उत्तराखंड बना मॉडल
लखनऊ। 1947 के भारत-पाक विभाजन के बाद उत्तर प्रदेश में बसे पाकिस्तानी शरणार्थियों को अब जमीन पर मालिकाना हक मिलने की उम्मीद जगी है। इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए मुरादाबाद के मंडलायुक्त आन्जनेय कुमार सिंह की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप दी है। रिपोर्ट में उत्तराखंड मॉडल को आधार बनाते हुए जमीन का अधिकार देने की सिफारिश की गई है।
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी, रामपुर, बिजनौर और पीलीभीत जिलों में बसे करीब 20 हजार शरणार्थी परिवार लगभग 50 हजार एकड़ भूमि पर दशकों से काबिज हैं। इन परिवारों में अधिकांश हिंदू और सिख समुदाय से हैं, जिन्हें जीविकोपार्जन के लिए तत्कालीन सरकार द्वारा जमीन दी गई थी। हालांकि, आज तक उन्हें जमीन पर पूर्ण स्वामित्व यानी संक्रमणीय भूमिधर अधिकार नहीं मिल सका है।
जमीन है, अधिकार नहीं
इन शरणार्थी परिवारों को बैंक से कृषि ऋण लेने की अनुमति तो है, पर वे अपनी भूमि न बेच सकते हैं, न किसी अन्य उद्देश्य से गिरवी रख सकते हैं। कारण यह है कि इनकी जमीनें सरकारी अधिनियमों के तहत दी गई थीं, जिनमें सीमित अधिकार होते हैं।
रामपुर जिले में ऐसे 23 गांव और बिजनौर में 18 गांव हैं जहां शरणार्थी परिवार पीढ़ियों से रह रहे हैं। लखीमपुर खीरी और पीलीभीत में भी इनकी आबादी जंगलों के किनारे या ग्राम समाज की जमीन पर है। कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, कई परिवारों को गवर्नमेंट ग्रांट एक्ट के तहत जमीन दी गई थी, जो अब समाप्त हो चुका है, जिससे स्थिति और अधिक जटिल हो गई है।
कानूनी संशोधन की जरूरत
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि शरणार्थियों को जमीन का मालिकाना हक देने के लिए एक अलग कानून लाना होगा, जिससे मौजूदा नियमों में शिथिलता लाई जा सके। उत्तराखंड सरकार ने पहले से ही इस दिशा में पहल कर, जमीन का आंशिक मूल्य लेकर या निशुल्क संक्रमणीय भूमिधर अधिकार दिया है। इसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी विकल्पों पर विचार किया जा रहा है।
हालांकि, वन भूमि, तालाब और चरागाह जैसी आरक्षित श्रेणियों की जमीन पर बसे कुछ परिवारों को लेकर प्रक्रिया जटिल हो सकती है। ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट की अनुमति और केंद्र सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
कैबिनेट उप-समिति पर विचार
सूत्रों के अनुसार, राज्य सरकार इस रिपोर्ट पर विचार के लिए एक कैबिनेट उप-समिति गठित करने पर मंथन कर रही है। अंतिम निर्णय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता वाली राज्य सरकार द्वारा लिया जाएगा।
इस पहल से न केवल शरणार्थी परिवारों को सामाजिक और आर्थिक स्थायित्व मिलेगा, बल्कि वर्षों से लंबित इस संवेदनशील मुद्दे का समाधान भी निकल सकेगा।