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तीन तस्वीर एक कहानी : वर्मा परिवार की साहित्यिक और राजनीतिक यात्रा का अनोखा दस्तावेज

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तीन तस्वीरें, एक कहानी: वर्मा परिवार की बहु-पीढ़ीय सांस्कृतिक विरासत का भावनात्मक चित्रण

नई दिल्ली। भारत की साहित्यिक और राजनीतिक परंपराओं में अपना विशिष्ट स्थान रखने वाला वर्मा परिवार एक बार फिर चर्चा में है। इस बार वजह है एक भावनात्मक सोशल मीडिया पोस्ट, जिसे डॉ. अभिषेक वर्मा ने हाल ही में अपने एक्स (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट पर साझा किया।

इस पोस्ट में तीन श्वेत-श्याम तस्वीरों के माध्यम से वर्मा परिवार की सांस्कृतिक और वैचारिक यात्रा का भावपूर्ण दस्तावेज प्रस्तुत किया गया है। पहली तस्वीर वर्ष 1968 की है, जिसमें अभिषेक वर्मा अपने माता-पिता, स्वर्गीय श्रीकांत वर्मा और वीना वर्मा के साथ दिखाई दे रहे हैं। दूसरी तस्वीर 2025 की है, जिसमें डॉ. अभिषेक वर्मा अपने बेटे अदितेश्वर वर्मा को गोद में लिए हुए हैं — एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संस्कृति, साहित्य और विचारों की विरासत के हस्तांतरण का प्रतीक।


श्रीकांत वर्मा: साहित्य और राजनीति की दोधारी छवि

स्वर्गीय श्रीकांत वर्मा (1931–1986) न केवल एक प्रसिद्ध कवि और पत्रकार थे, बल्कि उन्होंने भारतीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे 1976 से 1986 तक राज्यसभा सदस्य रहे और कांग्रेस पार्टी के महासचिव व प्रवक्ता के रूप में सक्रिय भूमिका निभाई। उनकी लेखनी और वक्तृत्व दोनों ही उच्च कोटि के माने जाते थे।

उनकी प्रसिद्ध काव्य-कृति “मगध” के लिए उन्हें मरणोपरांत 1987 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें तुलसी सम्मान (1976) और मध्य प्रदेश राज्य कला परिषद द्वारा शिक्षा सम्मान (1981) जैसे कई प्रतिष्ठित सम्मानों से भी नवाज़ा गया।


वीना वर्मा: राजनीतिक उत्तराधिकार की सशक्त नायिका

पति की असामयिक मृत्यु के पश्चात वीना वर्मा ने न केवल श्रीकांत वर्मा की राजनीतिक विरासत को संभाला, बल्कि उन्होंने स्वयं 1986 से 2000 तक राज्यसभा सदस्य और कांग्रेस पार्टी की उपाध्यक्ष के रूप में उल्लेखनीय सेवाएं दीं।


अगली पीढ़ी की ओर एक नई दृष्टि

अब वर्मा परिवार की विरासत अदितेश्वर वर्मा तक पहुँच चुकी है। तीन तस्वीरों में पीढ़ियों का यह क्रम सिर्फ पारिवारिक इतिहास नहीं, बल्कि भारत की राजनीतिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक परंपरा का जीवंत दस्तावेज बन चुका है।

डॉ. अभिषेक वर्मा द्वारा साझा की गई यह पोस्ट सोशल मीडिया पर भावनात्मक प्रतिक्रिया बटोर रही है, और लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर रही है कि परिवारों की सांस्कृतिक विरासतें किस तरह समय के साथ समाज में गहराई से रच-बस जाती हैं।

– संदीप पटेल SPTM
(सहसंपादक)

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