देश-दुनियाँ

आशा ने सरकारी इलाज की सुविधा के बारे में बताया तो टीबी से हुई ठीक

-चांदन प्रखंड की जेरुआ की रहने वाली आशा राधा देवी लोगों को कर रहीं जागरूक
-सरकारी अस्पतालों में टीबी के मुफ्त में हो रहे इलाज के बारे में दे रही हैं जानकारी

बांका, 1 नवंबर। सरकारी अस्पतालों में टीबी का मुफ्त में इलाज होता है। साथ में दवा समेत तमाम सुविधाएं भी लोगों को मिलती हैं। इसके अलावा जब तक इलाज चलता है तब तक मरीजों को पांच सौ रुपये प्रतिमाह राशि भी दी जाती है। लेकिन इसका फायदा लोग तभी उठा पाएंगे, जब इसकी जानकारी हो। तमाम जागरूकता कार्यक्रम के बावजूद अभी भी कई लोग इससे अनजान हैं। इस जानकारी को आमलोगों तक पहुंचाने में आशा कार्यकर्ता अहम भूमिका निभा रही हैं। चांदन प्रखंड के जरुआ गांव की रहने वाली राधा देवी ने इस जानकारी को आमलोगों तक पहुंचाकर कई टीबी मरीज को स्वस्थ्य होने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
राधा बहन की कृपा से मैं टीबी को मात दे सकीः बाराटाड़ गांव की रहने वाली किरण देवी कहती हैं कि जब मुझे टीबी हुआ तो डर गई थी। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण इलाज कराने से डरती थी, लेकिन जब एक दिन आशा बहन राधा देवी ने इस बारे में बताया तो अगले दिन मैं उनके साथ कटोरिया रेफरल अस्पताल गई। वहां पर एसटीएस सुनील कुमार से राधा बहन ने मिलवाया। इसके बाद जांच हुई। जांच में पुष्टि हो जाने के बाद मेरा इलाज शुरू हुआ। इसके बाद नियमित दवा का सेवन किया तो मैं ठीक हो गई। राधा बहन का मैं शुक्रगुजार हूं। साथ ही सरकार का भी, जिसने हम गरीब लोगों के लिए इस तरह की सुविधा दी है।
मुफ्त में हुआ मेरा इलाज, कोई पैसा भी नहीं लगाः चांदन प्रखंड की ही जेरुआ गांव की संगीता देवी कहती हैं कि जब मुझे टीबी हुआ था तो लोग मुझसे दूरी बनाकर रहने लगे थे। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। लेकिन जब आशा बहन राधा देवी को इस बारे में पता चला तो उन्होंने गांव के लोगों को समझाया कि टीबी अब छुआछूत की बीमारी नहीं रही। इसके बाद वह मुझे इलाज के लिए अस्पताल लेकर गईँ। अस्पताल में मेरा इलाज हुआ। इलाज बिल्कुल मुफ्त में हुआ। एक भी पैसा नहीं लगा। साथ में दवा भी मुफ्त में मिली। जब तक इलाज चला, तब तक पांच सौ रुपये की राशि भी प्रतिमाह मुझे मिली। अब मैं पूरी तरह से स्वस्थ्य हूं। मुझे किसी तरह की कोई परेशानी नहीं है।
टीबी के प्रति लोगों में खत्म हो रही छुआछूत की भावनाः आशा राधा देवी कहती हैं कि गांव के लोगों में अभी भी टीबी को लेकर छुआछूत की बात होती है। हालांकि जागरूकता कार्यक्रम का उन पर असर भी पड़ रहा है। अगर उन्हें समझा देती हूं तो वे लोग फिर ऐसी गलती नहीं करते हैं। क्षेत्र में मैं लगातार घूमती हूं। अगर टीबी के मरीज मिलते हैं तो उन्हें इसके बारे में बताती और इलाज के लिए अस्पताल लेकर जाती हूं। अब मैं कई टीबी मरीजों को ठीक करा चुकी हूं। इसका फायदा हो रहा है। लोग अब टीबी के प्रति जागरूक हो रहे हैं। उनमें छुआछूत की भावना खत्म हो रही है।

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