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कलयुग के राम बाबा रामदेव

बाबा रामदेव स्थाई महत्व वाली धातु के हैं। अनुकरणीय हैं। अनुकरणीय सभी नहीं होते हैं, होते हैं पर विरले। बाबा रामदेव उन्हीं विरलों में हैं सच तो यह है कि हर सामान्य पुरुष, महापुरुष होता भी नहीं है। हो भी नहीं सकता। बाबा रामदेव ने जिस तरह से अपने आप को स्थापित किया है वह अद्भुत है। बाबा रामदेव ने अध्यात्म, योग और राष्ट्रवाद को जिता जागता स्वरुप देकर हर भारतीयों को अपना मुरीद बना लिया है। बाबा रामदेव पर विशेष कथा।

 

क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। स्वाभाविक है। कई चेहरे आपको आकर्षित करते हैं। बरबस। कई बार ऐसा भी होता है कि सामने वाला आप पर एकदम असर न छोड़ पाए। यह तो बात हुई तात्कालिक। पर स्थाई महत्व अलग होता है। एकदम अलग। ऐसे ही एकदम अलग है बाबा रामदेव। जिन्होंने योग को विश्वभर में प्रसिद्धि दिलाई वहीं देश में तो आज जनजन में लोकप्रिय है। बाबा रामदेव का जन्म 12 दिसंबर 1965 को हरियाणा जिले के महेंद्रगढ़ जिले में नारनौल नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम राम यादव और गुलाबी यादव था। जो दोनों ही अशिक्षित थे लेकिन उन्होंने रामदेव का पढ़ाया था। बाबा रामदेव का नाम उनके माता-पिता ने रामकृष्म यादव रखा था। अब पांचवीं कक्षा तक तो वे अपने गांव के विद्यालय में ही शिक्षा लेते थे। बचपन से ही रामदेव बहुत कुशाग्र बुद्धि के थे जिनकी वजह से सभी अध्यापक उनको पसंद करते थे। पांचवीं कक्षा के बाद उन्होंने पास के ही गांव शहजादपुर के विद्यालय में दाखिला लिया क्योंकि उनका गांव इतना छोटा था कि उसमें केवल प्राथमिक विद्यालय ही था।

अब शहजादपुर में उन्होंने आठवीं कक्षा तक अध्ययन किया। बाबा रामदेव जिस गांव में रहते थे उस समय उस गांव में बिजली नहीं हुआ करती थी। बाबा रामदेव पढ़ाई करने के लिए केरोसिन वाला लैंप जलाकर रात में पढ़ा करते थे। उनके पिता बहुत गरीब थे, इसके बावजूद अपने बेटे के लिए कहीं से पुरानी किताब की व्यवस्था कर उनके लिए पाठ्यपुस्तकों का इंतजाम करते थे। रामदेव के बचपन में उनके साथ एक ऐसी घटना हुई जिसने उन्हें योग की तरफ आकर्षित किया था।

बाबा रामदेव को बचपन में शरीर का बाया हिस्सा पक्षाघात से ग्रस्त हो गया था। तब उनको किसी ने बताया कि पक्षाघात को केवल योग के माध्यम से ही शरीर को सक्रिय किया जा सकता है। अब वे अपने उपचार के लिए गहन योग का अध्ययन करने लगे और योगभ्यास करने लगे थे। काफी योगाभ्यास के बाद उनके पक्षाघात वाला हिस्सा पूर्ण रूप से सक्रिय हो गया था। जो उनके जीवन की सबसे बड़ी सफलता थी। अपने स्वयं के उपचार के बाद उन्हें योग का अर्थ समझ में आया कि किस तरह योग के माध्यम से असाध्य रोगों का भी इलाज किया जा सकता है। उसके बाद उन्होंने योग के प्रसार को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था।

आठवीं कक्षा के बाद किशोर रामदेव में आध्यात्म्य और योग में ही अपना जीवन बनाने का विचार किया। इस विचार को लेकर उन्होंने उस समय अपने घर को त्याग दिया और आचार्य बलदेव के गुरुकुल में चले गए जो हरियाणा में रेबाड़ी जिले के एक छोटे से गांव में था। आचार्य ने अपने नए शिष्य को वेदों, उपनिषदों, पुराणों का पाठ पढ़ाया। इसी के साथ यहां रहते हुए उन्होंने आत्मअनुशासन और ध्यानमग्नता का भी अभ्यास किया। बाबा रामदेव शुरुआत से ही स्वामी दयानंद सरस्वती के विचार से बहुत प्रभावित थे और वे भी उनकी तरह एक महान विचारक बनना चाहते थे।

बाबा रामदेव का वैराग्य

गुरुकुल में रहते हुए बाबा रामदेव ने योगाभ्यास करते हुए यह सीखा कि अगर उनको दुनिया में बदलाव लाना है तो उन्हें सांसारिक जीवन का त्याग करना पड़ेगा। इसी विचार के साथ उन्होंने संसार के वैराग्य ले लिया और सन्यासी का चोगा पहनकर स्वामी रामदेव नाम धारण कर लिया। अब वे हरियाणा के जींद जिले में आकर आचार्य धर्मवीर के गुरुकुल कल्व में शामिल हो गए और हरियाणा के लोगों को योग की शिक्षा देने लग गए। यहां पर वे लोगों को मुफ्त योग की शिक्षा देते थे। कुछ दिनों बाद बाबा रामदेव ने अहसास किया कि उन्हें योग का पूरा ज्ञान लेने के लिए वास्तविक योगियों से मिलना पड़ेगा।

अब वास्तविक जीवन के योगियों से मिलने की खोज में वे हिमालय की यात्रा पर निकल पड़े। यहां पर उनकी मुलाकात कई योगियों से हुई थी जो उस हिमालय पर अपने आश्रम बनाकर रह रहे थे। उन्होंने उन योगियों से योग और ध्यान की गहराई को समझा। अब वे खुद गंगोत्री ग्लेशियर में ध्यान में लीन हो गए और असली योग का अभ्यास करने लगे थे। यहां पर रहते हुए उन्हें अपने जीवन के वास्तविक ध्येय का पता चला था। कुछ समय रहने के बाद उनको अहसास हुआ कि यदि योग का अभ्यास करते हुए मेरा जीवन यही समाप्त हो गया तो मेरा ज्ञान भी मेरे साथ समाप्त हो जेगा, इसके लिए मुझे कुछ और सोचना होगा।

वे अपनी इसी नई सोच के साथ आचार्य बालकृष्ण और आचार्य बलवीर से मिले। जिन्होंने उनके मिशन में उनका साथ दिया था। इसके साथ ही हिमालय पर ही उनकी मुलाकात आचार्य मुक्तानंद और आचार्य वीरेंद्र से हुई थी। इन्हीं सब आचार्यों की मदद से वे अपने योग के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए उद्देश्य के लिए हिमालय छोड़कर हरिद्वार आ गए। हरिद्वार से ही उन्होंने अपने जीवन की एक ऩई राह का आरंभ किया था।

1993 में उन्होंने हिमालय छोड़ दिया था तथा 1995 में वे वेक्रूपालू आश्रम के अध्यक्ष स्वामी शंकरदेव के शिष्य बन गए। इस आश्रम की स्थापना स्वामी कृपालू देव ने 1932 में किया था जो पहले एक स्वतंत्रता सेनानी थे और बाद में आध्यात्मिक गुरु बन गए थे। कृपालु देव पहले किशोर चंद्र नामक एक क्रांतिकारी थे जो समाचार पत्रों के माध्यम से अंग्रेजो का विरोध करते थे। इन्होंने हरिद्वार में अनेक क्रांतिकारियों को शरण दी थी और साथ ही यहां पर पहला सार्वजनिक पुस्तकालय भी शुरू किया था जिसमें 3500 से भी अधिक पुस्तकें थीं। अब यहां पर रहते हुए उन्होंने सन्यास ले लिया। और स्वामी कृपालू देव के नाम से पुकारे जाने लगे।

1968 में जब स्वामी कृपालु देव की आयु 100 वर्ष की हुई तब वे परलोग सिधार गए। उनके बाद स्वामी शंकर देव उनके उत्तराधिकारी बने। 1995 में अपने गुरु स्वामी शंकरदेव से शिक्षा लेकर उन्होंने लोगों को योग सिखाना शुरु कर दिया और साथ ही प्राकृतिक चिकित्सा भी सिखाते थे। अब योग और आयुर्वेद का प्रसार करने के लिए वे पर्चे लेकर हरिद्वार की सड़कों पर घूमा करते थे। 1995 में ही उन्होंने दिव्य योग मंदिर ट्रस्त की स्थापना कर दी थी। 2002 में उन्होंने अपनी पहली सार्वजनिक सभा में योग स्वास्थ्य सिद्धांत को प्रकट किया था कि योग जीवन के लिए कितना आवश्यक है।

2003 में उन्होंने योग कैंप लगाना शुरू कर दिया और पूरी तैयारी के साथ योग सिखाना शुरू कर दिया था। उसी वर्ष से ही आस्था टीवी भी उनके साथ जुड़ गया और प्रतिदिन सुबह उनके योग शिविर का सीधा प्रसारण देने लगा था। उनके योग शिविर की वजह से आस्था चैनल भी काफी लोकप्रिय होने लगा था। यह पहला अवसर था कि योग को टीवी के माध्यम से सिखाया जा रहा था, जिसका ध्यान देश के कई लोगों ने अपनी ओर खींचा। अब उनके योग को बड़ी संख्या में लोग देखते थे और कई कलाकार उनके शिविर में शामिल होते थे। उनके योग को सीखने के लिए जब विदेशी लोगों की भी भरमार हुई तब उन्होंने अंग्रेजी भाषा को भी सीखी जिससे उन्होंने विदेश में भी योग प्रसार किया। आज उनके योग को पूरे विश्व में कई देशों जैसे ब्रिटेन, अमेरिका और जापान में अपनाया जाता है।

अपने योग का विश्वव्यापी प्रसार करने के उद्देश्य से बाबा रामदेव ने 2006 में पतंजली योगपीठ की स्थापना हरिद्वार में की जिसका उद्देश्य योग और आयुर्वेद को बढ़ावा देना था। बाबा रामदेव ने गुरु पंतजलि के नाम पर इस संस्थान का नाम रखा, जो भारत का सबसे बड़ा योग संस्थान है। यहीं पर आचार्य बालकृष्ण की बदौलत यूनिवर्सिटी ऑफ पतंजली बनी। यह संस्थान हरिद्वार-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है, जो हरिद्वार के कनखल से 20 किमी और रुड़की से 15 किमी की दूरी पर है। इस योगपीठ में योगाभ्यास करने वाले लोगों के लिए रहने खाने की भी व्यवस्था है, जहां पर हर समय हजारों योग करने वाले लोग जमा रहते हैं।

यह पतंजलि आयुर्वेद चिकित्सालय 20 एकड़ जमीन में फैला है जिसमें संसार का सबसे बड़ा ओपीडी है, जिसमें हर दिन छह से दस हजार तक रोगी रह सकते हैं। यहां पर सौ बेड वाला आईपीडी भी है जिसके साथ ही सभी आयुर्वेदिक पद्धति से उपचार के साथ अंग्रेजी पद्धति से उपचार करने के साधन उपलब्ध हैं। इसके अलावा इसके प्रांगण में पुस्तकालय, भोजनालय, पार्किंग और गेस्ट हाउस भी उपलब्ध है। इसके बाद बाबा रामदेव ने बढ़ते रोगियों को देखते हुए पतंजलि योगपीठ के दूसरे चरण का निर्माण करवाया जिसमें यहां से भी ज्यादा परिसर है।

बाबा रामदेव की कंपनी का नाम पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड है जो एक भारत की सबसे तेज बढ़ती हुई एफएमसीजी कंपनी है। पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड कंपनी की स्थापना 2006 में आचार्य बालकृष्ण ने बाबा रामदेव के साथ मिलकर की। इस कंपनी में निर्माण संबंधी सारा काम स्वयं आचार्य बालकृष्ण देखते हैं जिनकी इस कंपनी में भागीदारी प्रतिशत भी है। बाबा रामदेव इस कंपनी के उत्पादों का अपने योग शिविरों के माध्यम से प्रचार करते हैं तथा इनकी इस कंपनी में कोई भागीदारी प्रतिशत नहीं है। पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड कंपनी में उत्पाद आधुनिक तकनीक के साथ-साथ पुरानी पद्धतियों से भी बनाए जाते हैं जिसका मुख्य उद्देश्य आयुर्वेद का आगे बढ़ाना है। पतंजलि आयुर्वेद द्वारा हरिद्वार में पतंजलि फूड एंड हर्बल पार्क बनाया गया है जिसमें सारे उत्पादों का निर्माण किया जाता है। इस कंपनी की भविष्य में शाखाएं भारत के अन्य हिस्सों और नेपाल में खोलने की आशंकाएं हैं। पतंजलि आयुर्वेद में 800 से भी ज्यादा उत्पाद बनाए जाते हैं जिनमें से 45 प्रकार के कॉस्मेटिक उत्पाद और 30 प्रकार के खाद्य उत्पाद हैं। पतंजलि आय़ुर्वेद की सफलता का राज यह है कि एक तो ये दूसरी कंपनियों से सस्ता सामान देते हैं और दूसरा इनकी गुणवत्ता दूसरों से बेहतर है। पतंजलि के वर्तमान में इतने उत्पाद हो गए हैं कि उसने हिंदुस्तान उनिलिवर को छोड़कर बाकी सब बड़ी कंपनियों को पछाड़ दिया है।

पतंजलि ने हाल ही में सौंदर्य प्रसाधन और बेबी प्रोडक्ट्स भी बनाना शुरू कर दिया है। पतंजलि इससे पहले केवल आयुर्वेदिक दवाइंया बेचता था, जिसमें शरीर के अलग अलग विकारों के लिए तीन सौ से भी अधिक आयुर्वेदिक दवाईयां हैं। इन आयुर्वेदिक दवाईयों का देश के करोड़ों लोग अपनी अच्छी सेहत के लिए इस्तेमाल करते हैं। पतंजलि आयुर्वेद के वर्तमान में देशभर में चार हजार से भी ज्यादा रिटेल आउटलेट हैं। पतंजलि ने पतंजलियायुर्वेद डॉट नेट नामक अपनी स्वयं की ऑनलाइन स्टोर से पतंजलि उत्पाद को बेचा है। इसके अलावा भविष्य में इनको रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट भी ओपन आउटलेट खोलने का विचार है।

पतंजलि आयुर्वेद के वार्षिक टर्नओवर का ग्राफ लगातार बढ़ता ही जा रहा है। जब इन्होंने शुरुआत की थी तब केवल आयुर्वेदिक दवाइयां से इतना मुनाफा नहीं होता था लेकिन एफएमसीजी को उतारने के बाद पतंजलि ने काफी धन कमाया है। पतंजलि आयुर्वेद ने 2012 में 150 करोड़ 2013 में 850 करोड़, 2014 में 1200 करोड़ कमाया था जो 2015 में बढ़कर 2500 करोड़ हो गया। इस तरह पतंजलि आयुर्वेद भारत की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली कंपनी बन गई जो केवल स्वदेशी उत्पाद बनाती है। 2016 में इस कंपनी के 5000 करोड़ तक पहुंचने की आशंका है तथा 2020 तक ये लगभग 20000 करोड़ की कंपनी बन सकती है।

पतंजलि आयुर्वेद का घी सबसे ज्यादा बिकने वाला उत्पाद है जो भविष्य में ये अकेला उत्पाद पतंजलि आयुर्वेद को 2000 करोड़ कमाकर दे सकता है। घी के बढ़ते व्यापार को देखकर इस पर कई विवाद भी उठे थे जिसका बाबा रामदेव ने पूरे प्रमाणों के साथ उसे खारिज कर दिया था। इसके बाद पतंजलि आयुर्वेद का टूथपेस्ट दंत कांति ने कोलगेट जैसे वर्षों से चल रही कंपनी को पछाड़ दिया है। इसके अलावा पतंजलि आयुर्वेद का शहद, दलिया, नमक, मसाले, च्यवनप्राश जैसे खाद्य उत्पाद और पतंजलि आयुर्वेद के साबुन, शैंपू, हेयर आयन, फेसवाश, फेस क्रीम भी काफी बिकते हैं। इन सभी उत्पादों के बनाने के लिए पंतजलि फूड एवं हर्बल पार्क में दो लाख से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं जिमें प्रशिक्षित खाद्य वैज्ञानिकों से लेकर मजदूर तक शामिल हैं।

बाबा रामदेव प्रतिदिन चर्या

बाबा रामदेव प्रतिदिन सुबह 3 बजे उठकर योग प्राणायाम कराना प्रारंभ कर देते हैं। बाबा रामदेव अनाज बिल्कुल नहीं खाते हैं उसकी बजाय फल, हरी सब्जियां, दूध और जूस पीकर अपना जीवन चलाते हैं, जिससे उनके शरीर में बिल्कुल फैट नहीं है और पचास साल से ऊपर होने के बाबजूद एकदम हष्ट पुष्ट लगते हैं। वे खुद भी योग करते हैं और लोगों को भी सिखाते हैं। बाबा रामदेव शुद्ध शाकाहारी हैं जिन्होंने ना कभी अंडे को छुआ है और ना ही कभी अपने जीवन में शराब का सेवन किया है। बल्कि उन्होंने देश के लाखों लोगों को नशामुक्त और शुद्ध शाकाहारी बनाया है। बाबा रामदेव कोई लक्जरी लाइफ नहीं जीते हैं बल्कि एक कुटिया में जमीन पर सोते हैं, जिसमें एसी या कूलर जैसी कोई सुविधा नहीं है।

बाबा रामदेव रात में केवल चार घंटे सोते हैं बाकी 18-20 घंटे काम करते रहते हैं। भले वे योग हो या फिर भ्रमण हो। बाबा रामदेव वैसे तो अधिकतर समय योग सीखाने, प्रवचन सुनाने और भजन गाने में व्यतीत करते हैं। उन्होंने पिछले बीस सालों में देशभर में बीस लाख किलोमीटर का भ्रमण किया है तथा देश के लगभग बारह करोड़ लोगों से सीधा संवाद किया है। बाबा रामदेव को देश के इतिहास और देश के विकास के मुद्दे पर बोलना अधिक पसंद है जिसके कारण कई लोगों तक उन्होंने भारत के वास्तविक इतिहास को देश की जनता तक पहुंचाया है। इसके साथ ही स्वदेशी आंदोलन के सबसे बड़े महारथी हैं, जिन्होंने भारत में अनेक अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को मात दी है। उनके पतंजलि आयुर्वेद का उद्देश्य स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने से है।

बाबा रामदेव और विवाद

जो माहिर होते हैं फन के, उछलकर वे नहीं चलते।

छला जाता है पानी, कायदा है ओछे बरतन का।

बाबा रामदेव के लिए यह पंक्ति सटिक बैठता है। दरअसल बाबा रामदेव का शुरुआत से विवादों से नाता रहा है जिसका वे बड़ी बेबाकी और आत्मविश्वास के साथ जवाब देते हैं जिससे सामने वाले की बोलती बंद हो जाती है। बाबा रामदेव सबसे ज्यादा देश की राजनीति की बात करने पर विवादों में नजर आते हैं। बाबा रामदेव ने सबसे पहले काले धन के विवाद को उठाया जो करोड़ों रुपए विदेशी बैंकों में जमा है। इसके अलावा जन लोकपाल के लिए भी वे अन्ना हजारे के साथ बैठे थे जब उन्होंने अनशन भी किया था। इसके अलावा जन लोकपाल के लिए भी वे अन्ना हजारे के साथ बैठे थे जब उन्होंने अनशन भी किया था। इनको कांग्रेस पार्टी से भी सख्त नफरत है क्योंकि ये वंशवाद पर चलती है और अपने परिवार को राजनीति के शीर्ष पर बिठाना चाहती है।

बाबा रामदेव शुरू से ही नरेंद्र मोदी के प्रशंसक रहे हैं जब वे भारत के प्रधानमंत्री भी नहीं बने थे। बाबा रामदेव ने नरेंद्र मोदी के लिए चुनाव अभियानों में भाग लिया था और भाजपा का समर्थन किया था। जिसकी वजह से भी भाजपा को काफी फायदा हुआ था और पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा की सरकार सत्ता में आई थी। नरेंद्र मोदी के साथ जुड़े रहने के कारण भी बाबा रामदेव पर कई विवाद खड़े हुए थे कि उनको मोदी सहायता करते हैं जबकि उन्होंने इन बातों को नकारते हुए कहा कि उन्होंने अपना साम्राज्य अपनी मेहनत पर खड़ा किया जिसमें किसी भी नेता या अभिनेता का हाथ नहीं था।

बाबा रामदेव को प्रतिदिन पांच से छह प्रेस कांफ्रेंस करनी पड़ती है जिसमें वे विवादित मुद्दों को सुलझाते हुए दिखते हैं। बाबा रामदेव को आजकल तो आप योग शिविरों से ज्यादा न्यूज चैनलों पर देख सकते हैं जहां उन पर विवादित प्रश्नों की झड़ी लगाई जाती है जिसका वे बड़े आत्मविश्वास के साथ जवाब देते हैं। बाबा रामदेव कभी कैमरे के आगे आने से कतराते नहीं हैं और विवादों से घबराते नहीं है। बाबा रामदेव को पूर्ण विश्वास है कि वे अपना काम पूरी ईमानदारी और सच्चाई से करते हैं इसलिए वे किसी भी नेता या न्यूज चैनलों से नहीं डरते हैं। इन्हीं विवादों की वजह से ही बाबा रामदेव और ज्यादा प्रसिद्ध होते जा रहे हैं।

किसी ने ठीक ही है कहा कि

साहसी का बल दिया है, मृत्यु ने मारा नहीं है।

राह ही हारी सदा, राही कभी हारा नहीं है।

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