• रजौन प्रखंड के जियालाल सिंह ने 65 साल की उम्र में छह महीने के इलाज के बाद टीबी को हराया
• ठीक होने के बाद गांव के दूसरे लोगों को भी सरकारी अस्पताल में इलाज कराने को कर रहे जागरूक
बांका, 28 नवंबर
जियालाल सिंह जब भी किसी मित्र या परिवार के सदस्यों से मिलते हैं तो उन्हें टीबी रोग के विषय में कुछ जानकारी ज़रूर देते हैं। जानकारी में यह सलाह भी होती है कि यदि किसी को टीबी हो जाए तो उससे उपचार सरकारी अस्पताल से ही करवाना चाहिए| ऐसा करने से उन्हें सुकून मिलता है।
सुकून इसलिए मिलता है, क्योंकि राजौन प्रखंड के बामदेव गांव के 65-वर्षीय जियालाल सिंह खुद भी कुछ समय पहले ही टीबी से उबरे हैं और वह सरकारी अस्पताल में ही निःशुल्क उपचार करवाकर ठीक हुए हैं। “कुछ वर्ष पहले बीमार होने के बाद मैंने निजी अस्पताल में इलाज कराना शुरू किया। एक साल से अधिक बीत गया, लेकिन मैं ठीक नहीं हुआ। इससे मेरी चिंता बढ़ती ही गयी। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। आखिरकार मैंने सरकारी अस्पताल में डॉक्टरों से संपर्क किया जहां मेरे रोग का पता लगा और उपचार भी हुआ।’’ जियालाल बताते हैं।
अपने पुराने अनुभवों को साझा करते हुए जियालाल सिंह के चेहरे पर परेशानी और सुकून दोनों एक साथ उभर आती है। मानो ऐसा लगता है कि वह एक बड़े जंग को जीतकर लौटे हों। “ सरकारी अस्पताल में जांच होने के बाद पता चला मुझे टीबी है। यह जानकर मैं बहुत परेशान हो गया। घर में छोटे-छोटे बच्चे थे। टीबी होने के बाद डर लगा रहता था कि कहीं मेरे जरिये बच्चों को कुछ न हो जाए। लेकिन भगवान का शुक्र है कि मेरी बीमारी किसी में फैली नहीं। सरकारी अस्पताल में इलाज चला और मैं बिल्कुल ठीक हो गया।’’
आशा ने दिखाया रास्ता तो शुरू हुआ सही इलाज:
जियालाल कहते हैं – ‘‘निजी अस्पताल के इलाज से वह ठीक नहीं हुए। तभी एक दिन आशा कार्यकर्ता नीलू देवी घर आई। क्षेत्र में घूमने के दौरान उन्हें मेरी बीमारी के बारे में शायद पता चल गया था। नीलू बहन ने मुझे अपना इलाज सरकारी अस्पताल में कराने की सलाह दी। शुरू में मैंने सरकारी अस्पताल में इलाज कराने से साफ़ मना कर दिया। लेकिन जब उन्होंने मुझे भरोसा दिलाया तो मैं जांच के लिए सरकारी अस्पताल जाने के लिए तैयार हुआ। रजौन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में जांच के बाद मुझे टीबी होने की पुष्टि हुई।’’ जियालाल बताते हैं। रोग का पता लगने के बाद तो वह और डर गए। लेकिन वहां के लैब टेक्नीशियन और डॉक्टरों ने उन्हें भरोसा दिलाया तो कुछ बल मिला। छह महीने तक इलाज चलने के बाद मैंवह ठीक हो गए। “अब मैं पहले की तरह स्वस्थ जीवन जी रहा हूं। घर-परिवार के सदस्यों में भी अब खुशी है।‘’
दो अनुभव बहुत महत्वपूर्ण रहे:
जियालाल कहते हैं, उन्होंने टीबी इलाज के दौरान दो बातें सीखी। पहली यह कि यदि दो हफ़्तों तक खांसी एवं बुखार हो तो इसे नजरंदाज नहीं करें। यह टीबी के लक्षण हो सकते हैं। दूसरी बात कि टीबी के लक्षण दिखते ही स्थानीय चिकित्सकों से संपर्क करने की जगह आशा दीदी या सरकारी अस्पताल से संपर्क करना।
सरकारी अस्पताल के प्रति ग्रामीणों का बढ़ा भरोसाः
आशा नीलू देवी कहती हैं कि तमाम जागरूकता कार्यक्रम के बावजूद ग्रामीण क्षेत्र के लोगों में अभी जानकारी की कमी है। उन्हें यह विश्वास दिलाना जरूरी है कि सरकारी अस्पताल में बेहतर इलाज होता है। टीबी जैसी बीमारी के प्रति तो लोगों के मन में छुआछूत की भी भावना है, जिसे खत्म करना बहुत जरूरी है। वहीं, जियालाल सिंह के मित्र सत्येंद्र सिंह कहते हैं कि पहले तो उन्हें भी सरकारी अस्पताल पर उतना भरोसा नहीं था। लेकिन जियालाल जी के स्वस्थ होने के बाद भरोसा बढ़ा है। अब उनके घर में भी कोई बीमार पड़ता है तो सरकारी अस्पताल ही जाते हैं। ग्रामीण अरविंद पोद्दार और संजय सिंह भी उनकी बातों से सहमत हैं। उनका कहना है कि सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में जितना लोगों को बताया जाएगा, उतना ही लोग सेवाओं से परिचित होंगे।
इस साल अब तक 1285 मरीज चिह्नितः जिला यक्ष्मा केंद्र के डीपीएस डॉट व सुपरवाइजर गणेश झा कहते हैं कि इस साल अब तक टीबी के 1285 मरीज चिह्नित किए जा चुके हैं। इनमें 22 मरीज एमडीआर के हैं। चिह्नित सभी मरीजों का सरकारी स्तर पर इलाज चल रहा है। सरकार की तरफ से मिलने वाली तमाम सुविधाएं उन्हें उपलब्ध करवाई जा रही है। उनकी लगातार निगरानी की जा रही है। मरीज बीच में दवा नहीं छोड़े, इसे लेकर पर्यवेक्षक लगातार उनसे संपर्क में रहते हैं। इनमें से कई मरीज ठीक भी हो चुके हैं। पिछले कुछ सालों में जिले में टीबी के 2934 मरीज सरकारी सहायता प्राप्त कर ठीक हुए हैं।