राजनीती

फाजिलनगर में आसान नहीं स्वामी प्रसाद मौर्य की राह, त्रिकाणीय संघर्ष में फँसे

बसपा की दमदारी से जुझते दिखाई दे रहे स्वामी

कुशीनगर, यूपी की आवाज।
सत्ता के लिए दल बदलने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य इस बार भाजपा के चक्रव्यूह में फँसते नजर आ रहे हैं। फाजिलनगर सीट पर भाजपा की रणनीति और बसपा के दमदारी से चुनाव लडऩे के कारण स्वामी की राह आसान नहीं रह गयी।
चुनाव का गणित कभी नेताओं के कर्म और पार्टियों के काम के आधार पर होते थे, लेकिन आज का चुनाव धर्म, जाति, अगड़ा व पिछड़ा पर पहुँच गया है। इसी लिए चुनाव पूर्व का समीकरण जो पार्टियों के विचारधारा पर दिखता है, वह प्रत्याशियों के घोषित होते ही बदल जाता है।
332 फाजिलनगर विधानसभा में जातीय आंकड़े के अनुसार सबसे अधिक मतदाताओं की संख्या अल्पसंख्यक का है, उसके बाद ब्राह्मण, फिर (चनाउ, अवधिया, कुर्मी) मतदाताओं का है। चौथे नम्बर पर कुशवाहा, पांचवे नम्बर पर दलित समाज तो छठवें नम्बर पर यादव व वैश्य समाज की है। कुशवाहा समाज से भाजपा ने यहां से लगातार दो बार विधायक गंगा सिंह कुशवाहा के पुत्र सुरेंद्र कुशवाहा को तो सपा ने प्रदेश के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य को प्रत्याशी बनाया है। जबकि बसपा ने सपा के कद्दावर नेता व मजबूत दावेदार रहे इलियास अंसारी को अपने साथ जोड़ मैदान में उतारा है।
राजनैतिक जानकार बताते है कि फाजिलनगर का चुनाव भाजपा के नाक का सवाल है। स्वामी प्रसाद मौर्य ने भाजपा को काफी नुकसान पहुंचाया है। पाँच वर्ष मलाई खाने के बाद स्वामी को भाजपा बुरी लगने लगी और बड़ी संख्या में विधायकों के साथ उन्होंने समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली। स्वामी प्रसाद मौर्य के कारण भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी और जिन कमजोर विधायकों के टिकट वह काटना चाहती थी, उन्हें मैदान में उतारना पड़ा। इसका बड़ा खामियाजा भाजपा को नतीजे आने के बाद भुगतना पड़ सकता है। इस कृत्य के लिए भाजपा स्वामी प्रसाद मौर्य को बख्शने के मूड में नहीं थी। इसलिए भाजपा के चाणक्यों ने स्वामी को घेरने की दमदार रणनीति बनाई। इधर बसपा के पास भी मौका था कि वह धोखेबाजी का बदला स्वामी प्रसाद मौर्य से ले सके। सो बसपा ने भी दमदार मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर स्वामी की राह में कांटे बो दिए। वैसे जिस दमदारी से स्वामी प्रसाद मौर्य गए थे, वह उनकी रह नहीं गयी है। कुछ दिन तो उनके भाषणों में तल्खी दिखी, लेकिन कहीं न कहीं जो वह चाहते थे, वह समाजवादी पार्टी में उन्हें मिला नहीं। बेटे को टिकट भी वे न दिलवा सके।
अपनी साख बचाने के लिए स्वामी प्रसाद मौर्य ने अब पूरी ताकत झोंक दी है। उनके पुत्र अशोक मौर्य उनके चुनावी जंग का पिच बना रहे थे। अब स्वामी प्रसाद मौर्य खुद क्षेत्र में पहुँच कमान संभाल चुके है। जबकि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ने स्वामी प्रसाद मौर्य को घेरने के लिए चक्रब्युहु रचना शुरू कर दी है। इसके लिए पार्टी ने अपने स्टार प्रचारकों यहां भेज शुरू कर दिया है।
बसपा प्रत्याशी दलित समाज के साथ अल्पसंख्यक समाज को अपने साथ जोड़ बड़ा धमाल करने की रणनीति बना रहे है। बसपा प्रत्याशी इलियास अंसारी का सर्वसमाज में अच्छी पकड़ बताई जा रही है। ऐसे में बसपा प्रत्याशी भाजपा और सपा दोनों ही दलों के मतदाताओं को साधते दिख रहे है। राजनीतिक जानकार यह भी बता रहे है कि फाजिलनगर के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका अल्पसंख्यक, ब्राह्मण एवं (चनाउ, अवधिया और कुर्मी) मतदाताओं की हो सकती है। वर्तमान स्थिति में अल्पसंख्यक सपा और बसपा दोनों के पाले में दिख रहा, लेकिन चुनाव के समय उसकी स्थिति क्या होगी यह समय बताएगा। जबकि ब्राह्मण के अधिकांश मतदाता भाजपा के पाले में जाता दिख रहा, जबकि कुछ ब्राह्मण सपा व बसपा के पक्ष में दिख रहा। वहीं चनाउ, अवधिया और कुर्मी मतदाता भाजपा और सपा दोनों तरफ झुकता दिख रहा। कुशवाहा समाज भाजपा व सपा दोनों ओर जा रहा है। जबकि यादव सपा और वैश्य भाजपा के साथ दिख रहा है।
सब मिलाकर जो पार्टी ब्राह्मण एवं चनाउ, कुर्मी और अवधिया मतदाताओं को अपने ओर आकर्षित कर लेगा उसे चुनाव में बड़ा लाभ मिल सकता है। राजनीतिक जानकार यह बता रहें कि चुनाव में छोटी तदात में सैनी, मुसहर, गौंड़, भर, शर्मा (लोहार, बढ़ई), साहनी, रावत, भेडि़हार, चौहान व अन्य दर्जनभर समाज के मतदाताओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकता है। वे बताते हंै कि इस समाज के लोगों को समाज में कम देखा जाता है, इनका भी आरोप रहता है कि हमें कोई नहीं पूछता। ऐसे में इनको जो दल या प्रत्याशी साध लेगा, परिणाम अचानक बदल जायेगा। राजनीतिक जानकार अपनी गणित के अनुसार जो तस्वीर दिखा रहे है, उसके अनुसार यहां की लड़ाई त्रिकोणीय दिख रही है। अगर बसपा ने ठीक से चुनाव लड़ा तो चुनाव आश्चर्यचकित करने वाला हो सकता है।

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