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डिजिटल युग में राजनीति: सोशल मीडिया से बनती और बिगड़ती छवि : जनता से सीधा संवाद या भ्रम का जाल?

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राजनीति की नई दिशा: कैसे सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया बदल रहे हैं नेताओं और राजनीतिक पार्टियों का चेहरा?


परिचय:
आज की राजनीति केवल मंचों, रैलियों और पोस्टरों तक सीमित नहीं रह गई है। डिजिटल क्रांति ने राजनीति को भी प्रभावित किया है और अब सोशल मीडिया नेताओं और राजनीतिक दलों के लिए सबसे ताकतवर हथियार बन चुका है। एक क्लिक पर करोड़ों लोगों तक अपनी बात पहुंचाना अब संभव हो गया है। लेकिन यह बदलाव सिर्फ सकारात्मक ही नहीं, बल्कि कई बार चुनौतीपूर्ण भी साबित हो रहा है।


1. सीधी जुड़ाव की ताकत

पहले जहां जनता और नेता के बीच संवाद का माध्यम सिर्फ अखबार, टीवी या चुनावी रैलियां हुआ करती थीं, वहीं अब एक ट्वीट या फेसबुक पोस्ट से नेता जनता तक सीधे अपनी बात पहुंचा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल जैसे नेता सोशल मीडिया के जरिए करोड़ों लोगों से जुड़े हुए हैं।


2. चुनावी प्रचार की रणनीति में बदलाव

अब चुनावी प्रचार पोस्टरों और जनसभाओं तक सीमित नहीं है। डिजिटल कैंपेन, वायरल वीडियो, लाइव इंटरव्यू और व्हाट्सएप ग्रुप्स के ज़रिए पार्टियां चुनावी माहौल बना रही हैं।
डिजिटल विज्ञापन, फेसबुक लाइव, इंस्टाग्राम रील्स और यूट्यूब चैनलों का इस्तेमाल अब हर पार्टी की रणनीति का हिस्सा बन चुका है।


3. छवि निर्माण और ब्रांडिंग का केंद्र

नेताओं की छवि और ब्रांडिंग अब सोशल मीडिया पर निर्भर हो गई है। अच्छे फोटोज़, भावनात्मक वीडियोज़, मोटिवेशनल पोस्ट और प्रभावशाली बाइट्स शेयर कर नेता अपनी मजबूत छवि बनाते हैं। वहीं विपक्षी पार्टी इन पोस्टों को निशाने पर लेकर ट्रोलिंग भी करती है।


4. फेक न्यूज़ और ट्रोलिंग का खतरा

जहां सोशल मीडिया ने संवाद को आसान बनाया है, वहीं इससे गलत सूचनाओं और अफवाहों का खतरा भी बढ़ा है। एक झूठा पोस्ट या एडिटेड वीडियो चुनावी समीकरण बदल सकता है। राजनीतिक विरोधियों को बदनाम करने के लिए ट्रोल आर्मी और बॉट्स का इस्तेमाल आम हो गया है।


5. युवा वोटरों तक पहुंच का सशक्त माध्यम

भारत की बड़ी आबादी युवा है और युवा सबसे अधिक सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। राजनीतिक दल अब युवाओं को अपने पक्ष में करने के लिए मीम्स, शॉर्ट वीडियोज़ और इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग का सहारा ले रहे हैं।


6. नए नेताओं को पहचान दिलाने का मंच

सोशल मीडिया ने युवा और क्षेत्रीय नेताओं को भी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का मौका दिया है। छोटे कस्बों से उठे नेता भी अब अपने विचारों और कार्यों को देशभर में पहुंचा पा रहे हैं।


निष्कर्ष:
सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने राजनीति को अधिक पारदर्शी, तेज़ और प्रतिस्पर्धी बना दिया है। अब केवल जमीनी पकड़ नहीं, बल्कि डिजिटल उपस्थिति भी चुनावी सफलता की कुंजी बन चुकी है। लेकिन यह जरूरी है कि इन प्लेटफॉर्म्स का उपयोग जिम्मेदारी और सच्चाई के साथ किया जाए, ताकि लोकतंत्र और राजनीति दोनों का सम्मान बना रहे।

विशेष रिपोर्ट – संदीप पटेल SPTM 
(उपसंपादक)

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