यूपी की आवाज
मीरजापुर। विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर भारत के संस्कृति की दुनिया भी दीवानी है। वहीं आदिशक्ति जगत जननी मां विंध्यवासिनी धाम की वैदिक राखी दुनिया भर में भारत के रिश्ते की डोर मजबूत करेगी। वैदिक राखी में भारतीय संस्कृति के साथ नारीशक्ति की भी झलक दिखेगी। जग विख्यात मां विंध्यवासिनी के प्रसाद स्वरूप शक्तिधाम की वैदिक राखी की मांग आस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा, दिल्ली समेत उत्तर प्रदेश के वाराणसी, गाजीपुर, प्रयागराज, चित्रकूट तक है। आदि देव भगवान शिव के प्रिय मास सावन पूर्णिमा पर वैदिक राखी के जरिए शिव-शक्ति का समागम होगा।
रक्षाबंधन के पवित्र पर्व पर बहनों द्वारा तैयार वैदिक राखियां भाइयों की कलाई की शोभा बढ़ाएंगी ही, देश-दुनिया को भारतीय संस्कृति से भी परिचित कराएंगी। महिला प्रबोधिनी फाउंडेशन की ओर से स्थापित विंध्याचल के कंतित स्थित शक्तिधाम में विंध्य क्षेत्र की महिलाएं पूजा-पाठ में प्रयोग होने वाले अक्षत, हल्दी, दुर्वा, शमी पत्र से वैदिक राखी तैयार कर रही हैं। शक्ति-भक्ति से लबरेज महिला प्रबोधिनी फाउंडेशन की अनूठी पहल पर महिलाएं देश-दुनिया को भारतीय संस्कृति से परिचित करा रही हैं। रक्षाबंधन पर्व पर वैदिक राखी जहां आय का जरिया बना है, वहीं इस प्रकार के कार्य से महिलाएं स्वावलंबी बनी हैं।
सनातन धर्म संस्कृति पर आधारित है वैदिक राखी
वैदिक राखी का निर्माण सनातन धर्म संस्कृति के विधि-विधान पर आधारित है। इसके निर्माण में सभी प्राकृतिक सामग्रियां प्रयुक्त की जा रही, जिनका हमारे जीवन को स्वस्थ रखने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वैदिक धर्म शास्त्र अनुसार अक्षत (चावल) हिदू धर्म संस्कृति में आयोजित होने वाले सभी धार्मिक अनुष्ठानों में प्रयुक्त होता है। वहीं हल्दी पूजन यज्ञ में उपयोग किया जाता है। यह हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक पदार्थ के रूप में जाना जाता है। दुर्वा का धर्म शास्त्रों में बहुत ही बड़ा स्थान है। सावन माह में बाबा भोलेनाथ का विशेष प्रिय पत्र शमी का उपयोग रक्षा के लिए किया जाता है।
धर्म संस्कृति एवं सामाजिक चेतना का केंद्र स्थल है शक्तिधाम
महिला प्रबोधिनी फाउंडेशन विध्य क्षेत्र की ग्रामीण महिलाओं को संगठित कर उन्हें शुरू से ही करुणा से लड़ने के लिए तैयार कर रही है। निदेशक विभूति कुमार मिश्रा ने कहा कि मातृशक्तियां आत्मनिर्भर हों, यही फाउंडेशन का उद्देश्य है। कोरोना काल में मातृशक्तियों ने सूती मास्क व सैनिटाइजर बनाकर लोगों को उपलब्ध कराने में अग्रणी भूमिका निभाई। शक्तिधाम धर्म संस्कृति एवं सामाजिक चेतना का केंद्र स्थल है। यहां जो कुछ प्रयोग किया जाता है। धर्म संस्कृति व समाज के हित को ध्यान में रखकर किया जाता है। वैदिक राखी बनाने का काम वर्ष 2022 से शुरू हुआ है। वैश्विक महामारी कोरोना के चलते धर्म शास्त्रों में वर्णित जीवन पद्धति के प्रति आस्था बहुत ही तेज से बढ़ी है।
अब तक बेची जा चुकी है छह हजार वैदिक राखी
विभूति मिश्रा ने बताया कि अब तक छह हजार वैदिक राखी बेची जा चुकी है। रक्षाबंधन पर्व पर देश-विदेश से पांच हजार वैदिक राखी के आर्डर मिले हैं। जान-पहचान के लोग भी वैदिक राखी मंगाए हैं। विदेश में रहने वाले भारतीयों को वैदिक राखी खूब भायी है। इसमें भारतीय संस्कृति के गुण होने की वजह से खास पसंद आई है।
पांच हजार रुपये आसानी से कमा लेती है एक महिला
महिला प्रबोधिनी फाउंडेशन अध्यक्ष नंदिनी मिश्रा के मार्गदर्शन में मंजूलता विश्वकर्मा, शिवदुलारी, संगीता देवी सहित स्वयं सहायता समूह की लगभग 200 महिलाएं वैदिक राखी बनाने में लगी हुई हैं। एक राखी की कीमत 35 से लेकर 55 रुपये तक है। पांच दिन की प्रक्रिया के बाद एक महिला एक दिन में 50 राखी तैयार करती है। 15 रुपये प्रति राखी मुनाफा होता है। रक्षाबंधन पर्व पर एक महिला पांच हजार रुपये आसानी से कमा लेती है।
भाई की रक्षा के साथ पर्यावरण को प्रदूषण से बचाएगी वैदिक राखी
रक्षाबंधन सनातन धर्म का भाई-बहन का सर्वोच्च पर्व है तो सनातन धर्म को भी मानना होगा। अन्य राखी अलग वैदिक राखी भाई की कलाई की शोभा बढ़ाने के साथ उनकी रक्षा करेगी ही, पर्यावरण को भी प्रदूषण से बचाएगी। राखी बांध बहन अपने भाई के स्वस्थ जीवन व लंबी आयु की मंगल कामना करती हैं। ऐसे में जब रक्षासूत्र के साथ के पांच वैदिक पदार्थ भाई की कलाई पर बंधे तो निश्चित रूप से धर्म संस्कृति शास्त्र पुराण के अनुसार भाईयों की शारीरिक शक्ति में वृद्धि होगी और स्वस्थ होंगे।
औषधीय गुणों पर आधारित है वैदिक राखी
वैदिक राखी का निर्माण सनातन धर्म संस्कृति में वर्णित प्राकृतिक तत्वों में मौजूद औषधीय गुणों पर आधारित है। वैदिक राखी पंच प्राकृतिक तत्व यथा दूर्वा, हल्दी, शमी पत्र, अक्षत, कुमकुम का प्रयोग करके बनाया जाता है। संत महात्मा, धमार्चार्य भी इस राखी की मांग कर रहे हैं।
महिलाएं ऐसे बनाती हैं वैदिक राखी
महिला मंजू लता ने बताया कि वैदिक राखी का आधार गाय के गोबर से तैयार किया जाता है। इसमें उरद दाल का चूर्ण, गोंद और मुल्तानी मिट्टी मिलाकर सूती कपड़े में बेस बनाकर इसे सुखाया जाता है। इसके बाद इसकी डिजाइन काटी जाती है। उसी डिजाइन में शमी के पत्ते को बिछाया जाता है। इसमें हल्दी, चंदन, कुमकुम का पेस्ट लगाया जाता है। इसमें भी उरद और गोंद का मिश्रण लगाया जाता है, फिर सुखा लिया जाता है। इसके बाद सीट तैयार हो जाती है। इसे कैंची से काटकर तैयार कर लिया जाता है। कलावा राखी के पीछे लगा दिया जाता है। राखी ऐसी तैयार हो जाती है।